Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 54
________________ पाँचवाँ अध्याय ४९ २१ - हिताहित के उपदेश आदि से परस्पर एक दूसरे का सहायक होना जीवों का उपकार है। २२ – वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व, ये पाँचकाल के उपकार हैं। २३ - स्पर्श, रस, गंध और वर्ण वाले पुद्गलद्रव्य हैं। २४ - तथा ये पुद्गल शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, आतप शीतलप्रकाश वाले भी हैं। धूप, उद्घोत = = २५ - पुद्गल परमाणुरूप और स्कन्धरूप है। २६ – संघात एकत्रित करना, भेद भाग करना और संघात - भेद इन तीनों कारणों से स्कन्ध पैदा होते हैं। २७- अणु भेद से ही होता है, संघात से नहीं । २८ - जो नत्रेन्द्रिय-गोचर स्कन्ध होता है, वह भेद और बात दोनों से ही होता है। २९ – जो उत्पत्ति, विनाश और स्थिरता से युक्त है, वही सत् है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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