Book Title: Tarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Author(s): Taranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
Publisher: Mathuraprasad Bajaj

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Page 16
________________ श्रा तारणतरण ४ ॥२॥ विशेष-तारण स्वामी रचित ग्रंथ उस समयकी उनकी ही भाषामें हैं, उनमें न तो मात्र संस्कृत हैन प्राकृत न ठेठ हिंदी है। स्वामी जिस भाषामें कहते थे वही रचना लिखित मिलती है। दीर्घ कालके लेख प्रतिलेख होनेसे अक्षरोंका व्यतिक्रम होना संभव है। यहां मात्र भाव ग्रहण कर पाठकोंके लाभार्थ दिखलाया जाता है। ॐ शब्दको ॐकार या ऊंवंकार कहनेका रिवाज था ऐसा मालूम होता है। ॐ शब्दमें जैनियों द्वारा मान्य पांच परमेष्ठी गर्भित हैं। हरएक प्रथम अक्षरको लेकर यह शब्द बना है। जैसे अरहंतका-अ सिद्ध या अशरीरका-अ आचार्यका-आ उपाध्यायका साधु या मुनिका-म् इस तरह अ+अ+आ+उ+म्-ओम् या ॐ बन जाता है। इन पांचोंमें अरहंत जीवन्मुक्त परमात्मा शरीर सहितको व सिद्ध शरीर रहित शुद्ध परमात्माको कहते हैं। दोनों सर्वज्ञ तथा वीतराग हैं। आचार्य, उपाध्याय, साधु तीन प्रकार परमगुरु सम्यग्दृष्टी अंतरात्मा हैं, जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, परिगृह त्याग ऐसे पांच महाव्रतोंको व ईा, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण, प्रतिष्ठापना ऐसी पांच समितियोंको व मन वचन काय गुप्ति ऐसी तीन गुप्तियोंको इस तरह तरह प्रकार चारित्रको पालते हैं। निश्चयसे शुद्धात्म रमण रूप चारित्रमें आरूढ़ होते हैं। जो साधु दिक्षा शिक्षा दाता हैं वे आचार्य हैं। जो विशेषज्ञ शास्त्र पाठ देते हैं वे उपाध्याय हैं।जो मात्र साधन करते हैं वे साधु हैं। चार हाथ प्राशुक भूमि देखकर दिनमें चलना ई- समिति है, शुद्ध प्यारी भाषा कहना भाषा समिति है, शुद्ध भाजन भिक्षासे अपने उद्देश्यसेन बनाया हुआ लेना एषणा समिति है। पीछी कमंडल शास्त्र व अपने शरीरको देखकर रखना उठाना आदाननिक्षेपण समिति है। निर्जंतु भूमिपर मल मूत्र करना प्रतिष्ठापना समिति है। जगतमें ये पांच पद ही श्रेष्ठ हैं। क्योंकि ये संसारको पीठ देकर मोक्ष रूप या मोक्षमार्गी हैं ॥२॥

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