Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 15
________________ (५) वसमरानन्द । करें।" विद्याधर अपने उद्देश्यकी पूर्ति समझ कहता है, "है मित्र ! धवष्टाओ नहीं, हम नित्य तुमको धर्मामृत पानं करानेके लिये भाएंगे," और तुम्हें युद्ध करने योग्य बल. प्रदान करेंगे । धन्य है यह आत्मा ! इसको अब देशनालब्धिकी प्राप्ति हुई है। जिनवाणी अपना असर करती जाती है । अंतरंगमें अशुभ कोका कडुवा रस बदलता जाता है । शुभ कर्मों का मिष्ठरस अधिक मीठा होता जाता है । यह मांत्मा अवश्य एक न एकदिन मोह शत्रुसें युद्ध ठान उसको परास्तकर शिवनगरीका राज्य करेगा । धन्य है यह युद्ध जिसमें हिंसाका लेश नहीं है, नो दयामय प्राणिसरक्षक है और जो अपनी क्रियामें परम मनोहर है। जो इस युद्धमें परिणमन करते हैं, वे अपने भाप ही भात्माकी सत्य सुखदाई भूमिकामें नयानन्दोंसे अतीत स्वसमरानन्दको लब्धकर परम आल्हादित रहते हैं। ' भन्य है परोपकारी विद्याधर जिसके नित्य धर्मरसके दिये हुए रुचिमई भोजनसे संसारी आत्माके शरीरमें पुष्टता और साहसकी वृद्धि हो रही है । क्रम २ से अव ऐसी अवस्था हो गई है कि, यह अपने अनंत बलको समझकर होशियार हो गया है और मोहकी सेनासे युद्ध करने के लिये तय्यार हो गया है। देशनालबिसे सीखे हुए विशुद्ध परिणामरूपी तीरोंको निर्भय होकर चलाने लगा है। मोह रानाकी नियत की हुई आठ प्रफारकी सेना संसारी आत्माके आठों ओर चल किये हुए है । इसने शुभ भावनाके मननरूप अनेक योद्धाओंको अपने मित्र ज्ञानी

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