Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 50
________________ स्वमरानन्द | (४०) उद्योगके अनुभव में स्वसमरानन्दको पते हुए विशाल आत्मभावके प्रकाश में उद्योतरूप रहते हैं । ( २० ) " महावीर धीर समरशील उत्साह-गंभीर आत्मराजा, मोहके युद्ध में बिजयको प्राप्त करता हुआ अपनी अटल शक्ति और विद्याधर गुरुकी सहायता से जो आनन्द और उमंग प्राप्त कर रहा है उसका वर्णन करना वाणीसे अगोचर है | भला जिप्स रसिकको आत्म-रस से बने हुए परम अमृतमई व्यञ्जनोंका स्वाद मिल जाता है वह जिव्हाइन्द्रीकी तृष्णाके निशानोंकी क्या परवाह कर सकता है ? उसके स्वाभिमानकी गणना गणनासे भी वाह्य है । उसकी शांतताकी शीतलता चंदनमालतीको भी लजानेवाली है । उसकी धीरताकी अक्षमता पर्वतको भी तिरस्कार करनेवाली है । निज विलासिनी प्रिय अनुभूति सखीकी रुचि इस यात्मानंद आशक्तको अपने कार्यमें परम दृढ़ किये हुए है ! अनिवृत्तिकरणके पदमें यह धीर मोह नृपके परम विशाल कषाय-योद्धाओंकी सेनाका बल प्रति समय अधिक २ घटाता जा रहा है। इसकी शुक्लध्यानरूपी खड्गके चमकने से मोहका सारा बल कम्पित हो रहा है, युद्ध स्थलमें पग जमता नहीं । मोह दलकी असावधानी देख आत्मवीर झटसे १० वीं श्रेणीमें चढ़ जाता है और सूक्ष्मसां परायके स्थल में कषायोंमें से केवल संज्वलनलोभको ही अपने सामने अत्यन्त कृश और दुर्बल भवस्था में खड़ा पाता है । अब मोह नृपने लाचार हो पुरुषवेद, संज्वलनक्रोध, मान, माया, लोभ, ऐसे पांच प्रकारके सेनादलको युद्धस्थलमें भेजना बन्द

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