Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 59
________________ (४९) स्वसपरानन्द । श्रेणीपर चढ़ ही गया । यह बात देख मोह-नृपके पक्षियोंको बड़ा ही कष्ट हुआ है और वे निप्स तिस प्रकार इस वीरको इस श्रेणीसे डिगाना चाहते हैं, परन्तु इस समय यह धीर होकर अपने स्वरूपको न भुलाकर वहांसे अपना कदम नहीं हटाता है। दर्शनमोहनयि योद्धाके तीन भाधीन चाकर मिथ्यात्व, सम्पग्मिथ्यात्व और सम्यक्त प्रकृति मिथ्यात्व यद्यपि दब गये हैं, परन्तु युद्ध भूमिसे हटे नहीं हैं और मोहनृपसे प्रेरित किये जाने पर तीनों ही इस दावमें लगे हैं कि इसको इस श्रेणीसे च्युत करें । परन्तु इस वीरके अंतरंगमें अपने आत्मशुद्ध बुद्ध पाम तेजस्वी बलकी ऐसी अन्दा विद्यमान है और यह प्रशम, संवेग, अनुकम्प और आस्तिक्य योहा ओंकी सेनाओंको शत्रुकी विपक्षमें ऐसी दृढ़तासे जमाए है कि इसकी परिणाम रूपी सेना-दलोंके सामने उन तीनोंकी सेना. ओंका कुछ बल नहीं चलता। परन्तु उन तीनोंकी सेनाओंमें से सम्यक्तरकृति-वी सेना बड़ी चतुर है, देखने में बड़ी सरल मालूम होती है । उसने अ.त्मवीरकी सेनामें दाव पाकर ऐसा मेल बदाया कि उसके कम्पमें जाकर सेना दलको मलीन करने लगी, मात्म वीरकी सेनाको शिथिल करने का उपदेश देने लगी : कभीर भोले जीव मोहमें पर अपनी दृढ़ता गमा बैठते हैं। ठीक यही हालत इसकी हुई । अत्मवीर यद्यपि इस श्रेणीसे च्युत नहीं हुआ है तथापि सम्यकप्रकृतिकी सेनाका प्रभाव पड़ जानेसे चल, मलिन, अगादरूप हो जाया करता है । यद्यपि इपको मोक्षके अनुपम आनन्दकी श्रहा है तथापि कभी ९ सशंकित हो जाता

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