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आत्मधीर स्वरूप तन्मयतामें मटका हुआ स्वसमरानंदका स्वाद ले स्वपथ अवरोही हो रहा है।
(२८) चतुर्थ शुद्ध गुणस्थानावरोही स्वात्मानुभवी क्षायिकसभ्यग्दृष्टी आत्मवीर संसार स्थित जीवोंके अनादि कालीन तीन शत्रु
और मोह रानाके परम प्रिय और बलिष्ठ योहा सप्त मोह-कर्मपर भमिट, अपूर्व, और निश्चय मोह विध्वंशनी विनयकी उपलब्धिसे अकथनीय मानन्द और मुक्ति-कन्याके अनुपम निर्मल मुख अव. लोकनके उल्लासमें तन्मय हो रहा है और हद साहस पकड़ मोह की मवशेष वृहत् कर्मरूप सेनाके विध्वंस करनेको भेदविज्ञानमई भट खड़गको उठाता है और उसकी निर्मल कान्तिकों चमकाता हुआ अति निर्भयतासे मोह-दलमें प्रवेश करता है। विशुद्ध परिणामरूप सिपाहियोंकी मददसे मानकी मानमें अप्रत्याख्यानावरणी कषायके चार योद्धाओंकी सेनाको ऐसा दुःखित करता है कि वे विह्वल होकर सामना छोड़ भागती हैं और अति दूर ना भयके साथ छिपकर बैठ रहती हैं। इतनेही में देशचारित्र योद्धाकी ११ प्रकारकी सेनाएं जो अपत्यान्यानावरणीफे दलोंके तेनके सामने नहीं मा सकी थीं, अब झूमती हुई व आनंद मनाती हुई व त्यागके सुगन्धित रंगो अपनी मनोहर पोशाकोंसे झलकाती हुई युद्धक्षेत्रमें माके अपने वैराग्यमई शस्त्रीको चलानेके लिये कमर कसके खड़ी हो जाती हैं और विशुद्ध परिणामोद्वारा अविभाग प्रतिच्छेदरूप वाणोंकी वर्षा करने लगती