Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 85
________________ (७६) (३६) वीर आत्माने परिश्रम करते २ शत्रुके विजय में कोई कसर नहीं रक्खी है, दसवें गुणस्थान में बैठा हुआ यह वीर प्रथक्त्ववितर्क विचार नामा शुक्लध्यानके द्वारा छोड़े हुए विशुद्ध परिणामरूपी बाणोंसे कर्मशत्रुओं को महान खेदित कर रहा है बातकी बात में सूक्ष्म-लोभ रूपी योद्धा, जो अधमरी दशामें पड़ा हुआ श्वास गिन रहा था, अपने प्राणोंको त्यागता है और तब मोह राजा मय अपने कुटुम्बके नाश हो जाता है । उस समय उस ज्ञानी अत्माको क्षीण मोह गुणस्थानी कहते हैं। मोहके विजयसे जो इस वीरको हो रहा है वह वचनातीत है । अब यह स्वानुभूति रमणी रमन में ऐसा एकाग्र हो गया है कि इसका उपयोग अन्यत्र पलटता ही नहीं । यद्यपि मोह राजाका मरण होगया है तथापि उसकी सेना ७ कर्मरूपी योद्धा अमीत सजीवित हैं । यद्यपि वे इसके स्वानुभव विलास में विधायक नहीं हैं; तथापि इनमें से वरणी अनंतज्ञान, दर्शनावरणी अनंत दर्शन, अंतराय अनंतवीके प्रकाशित होने में बाधक हो रहे हैं और इस आत्माको पूर्ण सत्य भोगने में विघ्नकर्ता हैं । इस वीरने इन्हींके संहारके लिये एकत्त्ववितर्कविचार नामा द्वितीय शुक्ल ध्यानकी खड़ग सम्हाली है और अंतर्मुहूर्त पर्यंत तक उसके शुद्ध परिणाम रूपी चोटों की मार उनको देनेका निश्चय कर लिया है। मोक्ष नारीको अब पूण निश्रय हो गया है कि यह वीर शीघ्र ही शिवपुरका प्रभु हो जायेगा । इसीके आनंदमें मोह शत्रुके क्षय होने पर विकी गरज से नहीं, किन्तु प्रमोद प्रदर्शनार्थ सातावेदनीय कर्म . . •• " * स्वसमरानन्द

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