Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 89
________________ (७९) खसमरानन्द | > } सुन्दरीका नाथ हो जाता है उस अयोग नामके १४ वे गुणस्थानपर इसने प्रवेश कर लिया है। अब यहां किसी भी नवीन सेनाका युद्धक्षेत्र में आगमन नहीं होता । तेरहवें गुणस्थान में ४२ कर्म प्रकृतियों की सेनाएं युद्धक्षेत्र में अधमरी दशा में साम्हना किये हुए थीं। यहां उनमें से १० बिलकुल साम्हनेसे हट गईं, अर्थात् वेदन १, वज्रवृषभनाराच संहनन १, निर्माण ९, स्थिर १, अस्थिर १ शुभ १ अशुभ १, सुस्वर १, दुःश्वर ९, प्रशस्त विहायोगति १, ममशस्त विहायोगति ९, औदारिक शरीर १, औदारिक अंगोपांग १, तैजस शरीर १, कार्माण शरीर १, समचतुरस्रसंस्थान ६, न्यग्रोध १; स्वाति १, कुव्नक १, वामन १, हुंडक १, स्पर्श १, रस १, गंध १, वर्ण १, अगुरुलघुत्व १, उपघात १, परघात १, उद्धार १, प्रत्येक १, इस तरह १० फे मानेपर केवल ११ प्रकृतियों ही की सेनाएं रह गई हैं, जैसे वेदनीय १, मनुष्यगति १; मनुष्यायु २, पंचेन्द्रिय जाति ९, सुभग १, १, बादर १, पर्याप्त १ आदेय १, यशः कीर्ति र, तीर्थकर प्रकृति १, उच्च गोत्र १; यद्यपि युद्धक्षेत्र में तेरहवें गुणस्थान की तरह अंतिम दो समय तक ८१ का सत्व रहता है पर उसी समय ७२ का सत्व विध्वंश हो जाता है और अंतिम समयमें शेष १३ प्रकृतियोंकी सत्ता भी चली जाती है। इस तरह इस गुणस्थान में आत्मवीरको बहुत परिश्रम नहीं करना पड़ता । मितने समय में हम अ इ उ ऋ ऌ- ऐसे पांच अक्षरोंको बोलते मैं उतनी ही देर तक यह वीर परम निकम्प परम ध्यानरूप अत्यन्त शुद्ध परिणतिको लिये हुए अपने आत्मानन्दमें लीन ,

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