Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 83
________________ (७३) स्वसमरानन्द । इस वीर साहसीका उत्साह भी ज्यादा है। यह धर्मबुद्धि पवित्र कार्य करनेवाली आत्मा परम पुरुषार्थी है। इसकी तृष्णा भी अगम्य है, इसको तीनलोक व अलोकका राज्य लेना है, इसको सिद्ध अवस्थाकी बराबरी करनी है, इसको तीन लोकके ऊपर अग्रभागमें विराजना है। ऐसा त्रष्णातुर शायद ही कोई हो पर धन्य हैं इस शुद्धात्मसेवीकी महिमा । यह अपने महान् लोभको रखते हुए भी निर्लोभी है - परम संतुष्ट है- षट्ररस से रहित आत्मीक रसका आस्वादी है, आत्मानुभवकी कल्लोलोंमें कलोल करनेवाला है । यह धीर वीर परमात्माकी अकंप भक्तिमें लीन रहता हुआ और मोह शत्रुके दांत खट्टे करता हुआ स्वसमरानन्दका अपूर्व लाभ ले रहा हैं । י ( ३६ ) संयम - अश्वपर आरूढ़ परमोत्साही आत्मा ९ र्वे गुणस्थान में ठहरा हुआ जिन अपूर्व परिणाम रूपी सेनाओं का लाभ कर रहा है उनका कथन नहीं हो सक्ता । इन सेना-समूहों में एक बड़ी अद्भुतता यह है कि सेनाओंका प्रवाह विलक्षण होनेपर भी उन्हीं सेनाओंके बिलकुल समान हैं, जो ऐसी श्रेणीपर आरूढ़ हरएक वीरात्माको प्राप्त हुआ करती हैं। मोह शत्रुके कषायरूपी योद्धा इन सेनाओं को मुंह देखते ही थरथर कांपते हैं और अंतर्मुहूर्तकी वीतरागकी वाणवर्षासे उनके पैर टिकते नहीं और सबके सब गिर जाते हैं । चेतनवीर अपनी बाणवृष्टिको कम नहीं करता और 1 L प्रतिसमय अधिकाधिक वेगके साथ वीतरागताकी शांतमय अग्निये वर्साता है, जिनके प्रभावसे कर्षायोंकी सेनाएं अधमरी होती हुई

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