Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 64
________________ किसीके प्राण नहीं लेती, परन्तु इसकी वक्रताको मेट देती है, तब बहु रूपियापना मिट जाता है, सारे पुद्गरकी मोह-माया अलग हो जाती है । तब जीवकी निर्मल भावरूप ही सेना बन जाती है, जो शीघ्र ही मोह-पक्षको त्याग चेतन पक्षमें आ जाती है । इस खड़ग के अनोखे अभ्यास से सातों मकृतिकी सेनाएं शनैः २ अपना रूप छोड़ देती हैं और मोहके युद्ध क्षेत्रमेंसे विदा हो जाती हैं। अब तो इस आत्मवीरने बड़ी भारी विनय कर डाली है । अनादि कालसे आत्माको विहल करनेवाले शत्रुओंका नाम निशान तक भी मिटा दिया है । धन्य है ! अब तो यह वीर क्षायिक सत्यक्तकी उपलब्धिमें परम तृप्त हो रहा है । स्वरूपाचरण चारित्र अविनाभावी सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान मित्रोंकी सुसंगतिमें अपने आपको कृतार्थ मानता हुआ निज अनुभूतितिया के स्वरूप - निरखनमें एकाग्र हो रहा है । षट् द्रव्योंकी निज-स्वरूपता - दर्पण में पदार्थके समान प्रतिभासमान हो रही है, जिधर देखता है समता स्वरसता और शांतताका ही ठाठ दीख रहा है। जैसे भांग पीनेवालेको सब हरा ही इरा झलकता है वैसे ही इस स्वरस पानी उन्मत्तको सर्व स्वरस रूप ही प्रकाशमान * । मानो यह सारा लोक अनुभव- इससे भरकर परम शांत - मे और यह उसीमें डूबा हुआ बेखबर चमकता हुआ स्वरूपा 1 डस्ट रहा ६. क्षोभरहित एक सागर पड़ा है । सम्यक्तरत्न जिसके मस्तक५९ विपर्यय और कारण विपर्यय रूपी अंधकारको हटा रहा . अपूर्व लाभमें ज्ञान वैराग्य योद्धाओंका सन्मान करता हुआ यह ..

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