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स्वसमरानन्द |
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घबड़ा जाती है । उनके घवड़ानेसे ही उनको बहुती निर्मलता आ जाती है। वे चेतन राजाके रास्तेको रोककर खड़े थे, पर उनमें कायरता के आते ही वीर मात्मा अपनी सेनाओं को बढ़ाता है और झटसे आठवें गुणस्थान में प्राप्त हो जाता है। अपूर्वकरण गुणस्थान में जाते ही चेतन राजाके पास ऐसे योद्धा जो पहले नहीं माए थे इस चेतनकी वीरता देख आते हैं और बड़ी ही उमंगसे इसको अपनाते हैं। मंत्र इस वीरने धर्मध्यानकी खड़गको अकार्यकारी जान छोड़ दिया और दृढ़ता के साथ पृथक् -वितर्कविचार नामक शुक्लध्यानकी खड़गकों हाथमें ले लिया है। इस पदमें यह वीर बड़ी ही एकाग्रतासे निर्मल भावके बाण चलाता है, यद्यपि बीच २. में मन वचन, काय योगोंकी पलटन होती हैं, व श्रुतके पद व अर्थका व एक गुणसे अन्य गुणका परिवर्तन होता है तौ भी इसको मालूम नहीं पड़ता । यह तो अब इस धुनमें है कि किसी - तरह मोहको नाशकर भगादूं । यद्यपि यह वीर इस उद्यममें है तथापि मोह भी गाफिल नहीं है। सातवें पदमें मोहकी सेनामें १७ प्रकृतियो की सेना बढ़ती थी । अब वहां केवल देवायुकी प्रकृति घट गई । इस क्षपक श्रेणी में भी १६ प्रकारकी सेना आरही हैं । युद्धमें सामना किये हुए ७ वें ७६ प्रकृतियोंकी सेना थी अब सम्तप्रकृति, अर्द्धनाराच, कीलक, असंप्राप्ता पाटिका संहनन रुक गई केवल ७२ प्रकृतियोंकी सेना है, जब कि मोहराजाकी युद्ध भूमिमें १३८ प्रकृतियोंकी कुल सेनाएं हैं, देवायुकी नहीं है । जो साहसी होते हैं वे बातकी बातमें बहुत कुछ कर डालते हैं | धन्य है वीर आत्मा ! अब इसकी भावना सफ़ल होनेको
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