Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 17
________________ (७) स्वसमरानन्द । रहे हैं । इसलिये लाचार हो वह वैसे ही कर्मके योद्धाओंको भेजता है, जिनकी स्थिति अंतःकोड़ाफोड़ी सागर है । साहसी मास्माकी विशुद्ध भावरूपी सेनाके योद्धाभोंके बलको बढ़ते देखकर जो नवीन मोह की फौन है वह अंतर्मुहूर्त तक अंतःकोडाकोड़ी साग. रकी स्थितिमें पल्पका संख्यातवां भाग घटती स्थितिको धरनेवाली 'ही समय २ में भाती है। फिर दूसरे अंतर्मुहूर्त तक उस अंत स्थितिम पल्यका संख्यातवां भाग घटनी स्थितिवाले कर्मोकी सेना समय २ माया करती है। इस तरह करते २ सात या आठसौ सागर स्थिति घटनेवाले कर्मोकी सेना भव आ जाती है तब एक प्रकृतिबंधापसरण होता है। इस प्रकार ३४ प्रतिबंधापसरणों के द्वारा घटती १ स्थितिवाले कर्मयोद्धा पाते हैं और अधिक स्पितिवाले कर्मयोद्धागोंकि मानेका साहस नहीं होता है । विशुद्ध भावधारी मात्माका ऐसा ही इस समय प्रभाव है। अब यह प्रायोग्य सन्धिका पूर्ण स्वामी हो गया है, इसने कर्म-शत्रुओंका बहुत चल क्षीण कर दिया है । धन्य हैं वे आत्मा को इस प्रकार शास्त्राभ्यासके द्वारा वस्तु स्वरूपका पुनः २ मननकर तथा सम्यक् मार्गकी भावनाकर अपने परिणामोंसे अनादि कालसे लग्न कर्म शत्रुभोंको पराजय करनेके लिये उद्यमवंत रहते हैं। भपना सुधा समूह अपने निकट है उसकी प्राप्तिमें जो रुचिवान होते हैं में संसारातीत अविनाशी निनरूपी समाधिमें तन्मय रहनेका हुल्लाप्त करते हुए निमघट कुरुक्षेत्रमें स्वसमरानंदका भोग भोगते नित्य आस्त्रयपर विनयपताका फहराते हुए आनंदित रहते हैं और भवके संकटोंसे बचनेका पक्का उपाय कर लेते हैं।

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