Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 30
________________ खस मरानन्द । (२०) जाता है उस समय उसको स्वस्वरूपकी अद्भुत बहार नगर आती है। ऐसी दशा में यह आत्मा भी सब्जित हो गया है। अब इसको कर्मशत्रुओंके आने, रहने तथा आक्रमणोंकी कुछ भी परवाह नहीं · है ! यद्यपि इसने स्वावरूपकी चिन्ता रक्खी है, सात शत्रुओंके बिना सारी मोहकी फौन बलहीन है वे ही शत्रु फिर इसको दवानेका उद्यम करते हैं । यह विचारा अंतर्मुहूर्त ही ठहरा था कि यकायक सम्बन्- " मिथ्यात्व नाम दर्शन मोहनीकी दूसरी प्रकृतिके योद्धाओंने इसको दवा दिया, और यह विचारा चौथे गुणस्थानसे गिरकर तीसरे में आ गया है। यहां इसकी बहुत ही बुरी दुर्गति है । मिथ्यात्व सम्यक्त दोनों का मिश्र भाव दही गुड़के स्वादके समान इसके अनुभव में आ रहा है। मिश्र प्रकृतिके बार्णोंके पड़ने से इसकी चेष्टा " "" I I विहल हो रही है । धन्य हैं वे पुरुष जो इस प्रकृतिका विश 'कर क्षायक सम्यक्ती होते हैं । और फिर कभी भी इस शत्रुसे. दवाये नहीं जाते हैं । स्वस्वरूपके अनुभव के स्वादी है, वे ही स्वसमरानन्दका आल्हाद ले परम तृप्ति पाते हैं । 1 3 - परन्तु जिन मालूम होती (१०) निश्चय नय से शुद्ध चैतन्यता विलासी परमतत्त्व अभ्यासी ज्ञानगुणविकासी आत्मा व्यवहार नयसे कर्मबंधन में पड़ा हुआ मोह शत्रुके द्वारा अनेक प्रकारसे त्रासित किया जा रहा है। कर्म शत्रुओंसे युद्ध करना एक बड़ा ही कठिन कार्य है । जो इस युद्धमें घबड़ाते नहीं किंनु तत्वविचारकी सहायता के - साहसी रहते हैं, वे ही अनादि कालसे संसारी आत्माको दुःखित, भरोसे पर A ·

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