Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 46
________________ स्वसमरानन्द (३६) मोहनीकी २१ प्रकृतिरूपी सेनाओंको दवानेमें प्रयत्न कर । इस प्रकार हिम्मत पा वह वीर चुप नहीं होता, अपने शुद्ध परिणामरूपी फौजोंमें ऐसी उत्तेजना करता है कि वे अधःप्रवृत्तिकरणके समान समय २ अपने में अनंतगुणी शक्ति बढ़ाते हैं। शक्तिके बढ़ते ही यह वीर झटसे आठवीं श्रेणी अपूर्वकरणमें चला जाता है और पृथक्कवितर्कविचार शुक्लध्यानरूपी योडाके बलसे अपूर्व २ छटाको बढ़ाता हुआ चारित्र मोहनीके दलको उपशमा रहा है। इसकी ऐसी तेजीके कारण मोहकी सेनामें देवायुकी फौनोंका भाना बंद होगया । सातवीं श्रेणी में ५९ प्रकृतियोंके नवीन दल आते थे। अब ५५ के ही आते हैं तथा सम्यक्त प्रकृति, भई नाराच, कीलक और असंपाप्तास्फाटिक संहननकी फौजोंने इस आत्मवीरका साम्हना करना छोड़ दिया । इसके पहले ७६ प्रकतिका दल मुकाबले में था। अब केवल ७२ का ही रह गया है । तो भी मोहशत्रुकी युद्ध सत्ता भूमिमें अभी १४२ प्रकृतियोंका दल बैठा हुआ है । यहां अनंतानुवन्धी ४. कषायोंका दल नहीं रहा है। इस प्रकार आत्मवीर और मोहशत्रुका भयानक युद्ध हो रहा है । आत्मवीर शिवतियाके मोहमें फंसा हुभा इस आशामें उछल कूद रहा है कि वह अब शीघ्र ही मुक्त महलमें पहुंचकर अपना मनोरथ सिद्ध कर लेगा । उसे यह नहीं खबर है कि अभी तक मोहकी सेनामोंके सर्वसे प्रबल योन्हर अनंतानुबंधी कषाय और दर्शन मोहनीयकी सात प्रकारकी सेनाभोका संहार नहीं हुभा है और वे इस घातमें हैं कि यह अपने प्रयत्नसे जरा थके कि हम इसको गिरा देवें और कैद कर लें।

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