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(१३) स्वसमरानन्द। विलास भोगेगा। अपनी स्वस्वरूपलब्धिके लाभकी भाशाने इस भात्माके अंतरंगमें परम संतोष, परम शांत भाव भर दिया है। इस समय यह भी अपनी सेनाको विश्राम देता हुभा अपने अनंत शक्तिशाली स्वरूपका अनुभवकर जगतके आनन्दोंसे दूरवर्ती परम सुखको भोगता हुआ स्वसमरानन्दके अद्भुत विलासमें विश्वास घर परम सम्यक्त भावका लखाव कर रहा है।
परमानंदविलास, सुखनिवास, सद्भुणाभास, परमात्म प्रकाशमईके अनुपम चिद्धासके लाभका उत्साही यह अनादि मिथ्यादृष्टी.. आत्मा अनिवृत्ति करणलचिके प्रभावसे प्रथमोपशम सम्यक्तकी अपूर्व. शक्तिको प्राप्तकर समय १ अद्भुत विशुद्धता पा रहा है। यद्यपि अनादिके पीछे पड़े हुए मोहके भेद विवक्षासे. १५३ शत्रुओंमें से तथा अभेद विवक्षासे ११७ शत्रुओं से (क्योंकि सादिक २० में, ४, तथा ५ बंधन और ५ संघात, ५ शरीरोंमें गर्मित हैं इसलिये २६ कम हुई) अम केवल १०३ शत्रुओंकी सेना ही इसको आकुलता पहुंचा रही है। तथापि यह वीर इस समय इस भानन्दमें मस्त है कि मैं अब अधिकसे अधिक मईपुद्गल परावर्तनकालमें ही अवश्य शिवनगरमें जाकर निवास करूंगा और स्वसुधा-समूहका स्वाद अनंत कालतक भोगूंगा । इस समय मिथ्यात १, एकेन्द्रियनातिर, टेन्द्रियनाति३, तेन्द्रियनाति ४, चौन्द्रिय नाति५, स्थावर, आताप७, सूक्ष्म (, अपर्याप्त९, साधारण १०, अनन्तानुबन्धी क्रोध ११, अनन्तानुवन्धीमान १२, अनन्तानुबंधिमाया १३, अनन्तानुधिलोभ १४, इस प्रकार ११७ मेसें १५ शव दवे