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स्वसमरानन्द । कमनोर कर दिया है कि वे अपनी नई सेना मेमनेसे रुक गए हैं, तथा इन पांचोंका तो वह इस समय इस धीरवीरने बहुत ही कमजोर कर दिया है, इसकी सेनाको तितर चितर कर दिया है सो इसकी सर्व कर्मवर्गणारूपी सेना कुछ भागे व कुछ पीछे चली जारही है, इसके सामनेसे हट रही है। उधर उत्त उत्साहीके उत्साहका पार नहीं है, अत्यन्त विशुद्ध सम्यक्त शक्तिके प्रादुर्भाव करनेको समर्थ परिणामरूपी योद्धाओंने अपने तीक्ष्ण बाणोंसे उन पांचों सुभटोंको ऐसा परेशान कर दिया है कि, वे इस समय घबडा गये हैं और अपनी सेनाको तितर-बितर देखकर यही विचार करते हैं कि अब हमारा बल ठहरनेका नहीं, हमारी सेना विखर गई है। उचित है कि. हम एक अंतर्महूर्त ठहरकर अपनी सेनाको सम्हाल लेवें, फिर इसको कहां जाने देंगे, तुरंत इसके बलको नाश कर डालेंगे। थोड़ी देर इसको क्षणिक आनन्द मना लेने दो । अभी तो मेरे साथी वहुतसे वीर इसको दुखी कर रहे हैं। यह हमारे क्षेत्रसे बाहर तो जाने हीका नहीं है। ऐसा विचार यह पांचों दब जाते हैं अर्थात् उपशगरूप होकर एक अंतर्महूर्तके लिये अपने किसी प्रकार के बलको इस आत्मामें दिखलाते नहीं । इन पांचोंका दबना कि इस वीर आत्माको प्रथमोपशम सम्यक्तकी अपूर्व शक्तिका लाभ होना । अश! हा !! अब तो उसके हर्षकी सीमा नहीं, इसने अनादि कालके बड़े भारी योद्धाओं को दबा दिया है । उसी समय विद्याधर आता है और कहता है " शाबास, शाबाप्त ! अब तेरा संसार निकट है, तू शीन ही मोक्ष नगरका राजा होगा और वहांके अतीन्द्रिय सुखका