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स्वसमरानन्द। बैठे हैं तथा नई सेना भी माना बन्द हो गई है। इन १४ की तो नई सेना आती ही नहीं; इसके सिवाय हुंडक संस्थान, नपुंसफवेदर, नरकगति३, नरकगत्यानुपूर्वी४, नरकायु५, असंप्राप्तस्फाटिकसंहनन, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा८, प्रचा प्रचलाए, दुर्भग १०, दुस्वर११, अनादेय१२, न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान १३, स्वातिस०१४, कुनकस०१५, वामनसं०१६, बजनाराचसंहनन१७, नाराचसं०१८, महनाराचसं०१९, कीलितसं०९०, मप्रशस्तिविहायोगति२१, स्त्रीवेदर२, नीचगोत्र २३, विर्यगति२४,तिर्यगत्यानुपूर्वी२५, तिर्यचायु२६, उद्योत२९-ऐसे २७ शत्रुओंकी सेनाका माना और भी बन्द हो गया है। इस उपशम सम्यक्तकी अवस्था मनुष्यायु और देवायुकी सेना भी नवीन मानेसे रुक गई है । केवल ७४ प्रकृति ही अपनी नई सेना भेजती है । तथापि इस आनंदमईको इस समय किसीकी 'परवाह नहीं है । यद्यपि कुछ शत्रु दवे बैठे हैं, कुछ पुराने ही अपना नोर कर रहे हैं; तथापि इसकी रणभूमिमेंसे १४३ प्रकृति मई शत्रुओं में से किसीकी सत्ताका नाश नहीं हुमा है । ऐसा होने पर भी इस समय इसके साहसका पार नहीं है । इनके उत्साहकी थाह नहीं है । यह अपने बलको समय २ सावधान किये हुवे मनुपम रुचिके स्वादमें तृप्त हो रहा है। उधर वे शत्रु इसको अंतर्मुहूर्तके लिये मगन देखकर इसकी ओर इसके दबानेके लिये नाना विकल्प कर रहे हैं और दांत पीस रहे हैं । तथापि इस निधिके स्वामीको कुछ परवाह नहीं है। यह अपनी स्वरूप