Book Title: Swasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 16
________________ - विद्याधरको पूर्ण कृपासे प्राप्त कर लिया है। वे योदा उन कर्माकी सेनाके ऊपर अपने तीरोंको छोड़ २ कर विहुल कर रहे हैं। इस घमसान युद्ध में आयु कर्मकी सेना जो बड़ी ही चतुर है इसके तीरोंसे बच जाती है, सदा ही इसके पीछे रहती हुई इसको उस स्थानसे निकलने नहीं देती है। शेष कर्मोंके योदाओंकी स्थिति कमजोर होती जाती है। जो कभी उनकी स्थिति ७० कोड़ाकोड़ी .सागर थी वह स्थिति घटते २ अंत:कोड़ाकोड़ी सागर मात्र रह गई है। इन माठ प्रकाकी सेनामें : कर्मोकी सेना बड़ी ही तीव्र है जिसको घातिया कहते हैं। इनका स्वभाव यद्यपि युद्धमें बाणोंकी चोटके पाने से पहले पत्थर तथा हड्डीके समान कठोर था, परन्तु वह खभाव वाणोंकी लगातार चोटोंके पानेसे भन लकडी तथा वेलके समान नरम हो गया है । तथा अघातिया कमौकी सेनामें जिन योद्धाओंका स्वभाव इतना अशुभरूप था कि उनके द्वारा पहुंचाई हुई चोटें विष और हालाहलके समान दुरा असर करती थीं उनका स्वभाव इस आत्माकी भावरूपी फौनोंकी चोटोंसे भव दीला पड़कर नीम और कांजीके समान हल्का होता चला जाता है तथा अघातिया कोंमें जिन योद्धाओंकी सेनाओंका स्वभाव पहिलेहीसे कुछ शुभ था वे योद्धा इस साहसी मात्माके वीरत्त्वको देख अधिक शुभ होते जाते हैं, अर्थात् गुड़, खांडके समान निनका स्वभाव था वह अब बदलकर अमृत और शर्करारूप होता जाता है । मोहराना अपनी सेनाके योद्धाओंको समय २ खिरते देखकर चाहता है कि अधिक बलवान और स्थितिवाले कोको भेजूं, परन्तु वे इस वीरके पराक्रमसे घबड़ाकर कायर हो

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