Book Title: Swaroopsambhodhan Panchvinshati
Author(s): Bhattalankardev, Sudip Jain
Publisher: Sudip Jain

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Page 4
________________ प्रकाशकीय द्रव्यानुयोग संसारी जीवों पर सर्वोत्तम उपकार करता है। उसके दो विभाग हैं - अध्यात्म एवं न्याय | अध्यात्म ऊसरभूमि है, तो न्याय उसकी बाड़ है। स्वनामधन्य आचार्य अकलंकदेव के विषय में अब तक यही माना जा रहा था कि उन्होंने जैनन्याय को ही अपनी लेखनी का विषय बनाया है, परन्तु उनके 'स्वरूपसम्बोधन-पंचविंशति' ग्रन्ध के अध्ययन से वह भ्रम टूटता है। संस्कृतभाषा का यह ग्रन्थ शुद्ध आध्यात्मिक है। यह ग्रन्थ सरल, सुबोध शैली से अध्यात्म-पीयूष बरसाता है। इसके अक्षर-अक्षर से बूंद-बूंद अमृत झरता है। ग्रन्थ का कलेवर लघु है, परन्तु विषय गंभीर एवं उपयोगी है। ___पं० महासेनजी की कन्नड़भाषा की टीका से ग्रंथ के विषय में और अधिक निखार आया है। पं० महासेन जी आचार्य अकलंक के कुछ ही समय पश्चात् हुए हैं। वे अपने समय के लब्धप्रतिष्ठ, उद्भट विद्वान् रहे हैं। सुबोध शैली के धनी इन दक्षिणी विद्वान् ने ग्रंथ के हार्द को बहुत स्पष्ट किया है। अनेकों ग्रंथ भण्डारों से ग्रंथ की मूल व टीका प्रतियों को खोजकर ग्रन्थ का सम्पादन, प्रस्तावना-लेखन, हिन्दीरूपान्तरण एवं भावार्थलेखन वर्तमानकालीन तार्किक विद्वान् डॉ० सुदीप जैन ने किया है। इन्होंने प्रतिपाद्यविषय के समर्थन में अन्य ग्रंथों से उद्धरण दिये हैं, जिससे विषय स्पष्ट व सुगम बना है। यह ग्रन्थ अब तक ताड़पत्र पर ही था। ग्रन्थ के ताड़पत्र मूडबिद्री (दक्षिण कर्नाटक) के शास्त्रभण्डार से प्राप्त हुए हैं। __ अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, अलवर शाखा आपके करकमलों में यह अध्यात्मपुष्प अर्पित करते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रही है। शाखा का यह आद्य एवं नवीन-प्रयास है। आशा करते हैं कि यह प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में वटवृक्ष का रूप ग्रहण करें। ग्रन्थ-प्रकाशन का गुरुतर एवं श्रमसाध्य दायित्व शाखा-अध्यक्ष श्री नवीनजी

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