Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५० अन्यमतावलंबियों के फल प्राप्तिका निरूपण ५१ प्रकारान्तरसे देवोप्तादियों के मतका निरूपण ५२ त्रैराशिकों के मतका निरसन ६९ साधुओंके गुणका निरूपण ७० अध्ययन का उपसंहार ५३ प्रकारान्तरसे कृतवादियों के मतका निरूपण ५४ रसेश्वरवादियों के मतका निरूपण ५५ रसेश्वरवादिके मतके अनर्थताका कथन चौथा उद्देशा ५६ पूर्वोक्तवादियों के फलप्राप्तिका निरूपण ५७ पूर्वोक्तवादियों के प्रति विद्वानों का कर्त्तव्य ५८ साधुओं के जीवनयात्रा निर्वाह का निरूपण ५९ उद्गम आदि दोषोंका निरूपण ६० सोलह प्रकार के उत्पादनादोषका निरूपण ६१ शंकित आदि दशप्रकार के दोषों का निरूपण ६२ ग्रापणा के पांच दोषों का निरूपण ६३ पौराणिकादि अन्यतीर्थिकों के मतकानिरूपण ६४ विपरीत बुद्धि जनित लोकवाद का निरूपण ६५ अन्यवादियों के मतका खण्डन के लिये अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन ६६ अन्यवादियों के मत के खण्डन में दृष्टान्त का कथन ६७ जीवहिंसा के निषेध का कारण ६८ मोक्षार्थि मुनियों को उपदेश दूसरा अध्ययन का पहला उद्देशा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२-३॥ For Private And Personal Use Only ३८१-३८५ ३८६-३९० ३९०-३९२ ३९३-३९६ ३९६-३९९ ३९९-४०१ ४०२-४०७ ४०८-४१० ४१०-४१३ ४१३- ४१८ ४१९-४२१ ४२२-४२४ ४२४-४२६ ४२६-४२८ ४२८-४३५ ४३५-४४४ ४४४-४४७ ७१ दूसरे अध्ययनकी अवतरणिका ४६२ ७२ भगवान् आदिनाथने स्व पुत्रोंको दियाहुआ उपदेशवचन ४६३-६२६ तीसरा उद्देशा ७३ साधुओं को परीषह एवं उपसर्ग सहनेका उपदेश द्वितीयाध्ययनपर्यन्तका प्रथमभाग समाप्त ४४७-४५१ ४५१-४५३ ४५४-४५६ ४५६-४६१ ६२७-६८८

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