Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 01 Author(s): Kanhaiyalal Maharaj Publisher: Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ शंकितधर्म और अशंकित धर्म की भिन्नता का कथन २९०-२९१ २५ अज्ञानि पुरुषको अप्राप्तपदार्थ का निरूपण २९२-२९४ २६ अज्ञानियों के दोषों का निरूपण २९४-२९५ २७ अज्ञानवादियों के मतका निरसन २९६-२९७ २८ अज्ञानवादियों का मत दिखाते हुए सूत्रकार म्लेच्छके दृष्टान्त का कथन करते हैं २९८-२९९ २९ दृष्टान्त का कथन करके सिद्धांतका प्रतिपादन २९९-३०२ ३० अज्ञानवादियों के मत के दोपदर्शन ३०२-३०६ ३१ ये अज्ञानवादी अपने को या अन्यको बोधदेने में समर्थ नहीं होने का दृष्टान्त के द्वारा कथन । ३०६-३०८ ३२ अज्ञानवादियों के विषयमें अन्य दृष्टान्तका कथन ३०८-३०९ ३३ दृष्टान्त कहकर दार्टान्तिक-सिद्धांतका प्रतिपादन ३१०-३११ ३४ फिरसे अज्ञानवादिके मतका दोपदर्शन ३११-३१३ ३५ अज्ञानवादियों को होनेवाले अनर्थका निरूपण ३६ एकान्तवादियोंके मत का दोष कथन ३७ क्रियावादियोंके मत का निरूपण ३१९-३२२ ३८ क्रियावादियों के कर्म रहितपना ३२२-३२८ ३९ प्रकारान्तर से कर्मबन्ध का निरूपण ३२८-३३२ ४० कर्मबन्ध के विषयमें पितापुत्र का दृष्टान्त ४१ कर्मबन्ध के विषयमें आईत मतका कथन ३३४-३३९ ४२ ये क्रियावादियों के अनर्थ परंपरा का निरूपण ३३९-३४१ ४३ क्रियावादीयों के मत का अनर्थ दिखानेमें नौकाका दृष्टान्त ३४१-३४२ ४४ दृष्टान्त के द्वारा सिद्धान्तका प्रतिपादन ३४२-३४५ तीसरा उद्देशा४५ मिथ्यादृष्टियों के आचारदोषका कथन ३४६-३४८ ४६ आधाकर्मी आदि आहार को लेनेवालेके विषयमें मत्स्य का द्रष्टान्त ३४९-३५१ ४७ दृष्टान्त कहकर सिद्धांत का प्रतिपादन ३५१-३५२ ४८ जगत् की उत्पत्ती के विषयमें मतान्तर का निरूपण ३५३-३६९ ४९ देवकृत जगद्वादियों के मतका निरसन ३६९-३८० For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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