Book Title: Sutrakritang Sutra
Author(s): Kulchandrasuri, Nyayaratnavijay, Ratnachandravijay, Hemprabhvijay
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh

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Page 5
________________ संपादकीय श्री सूगकृताङ्गसूत्र के इस ग्रन्थ के अभ्यासी प्रति यह विनम्र निवेदन करना चाहता हूं कि संपदान कार्य क्षेत्र में यह हमारा सर्व प्रथम प्रयास पूज्य श्री कुलचंद्रसूरिजी की ही कृपा से हुआ है । हमारे जैसे अल्पज्ञ के संपादन में क्षतीयोंका अवश्य संभव है, विद्वान वाचक के द्वारा क्षतियां हमें अवश्य बतलायें ताकि दूसीआवृत्ति में वह पुनरावर्तित न होवे । यही एक प्रार्थना । प.पू. मुनिराजश्री राजरत्न वि. शिष्याणु न्यायरत्न वि. प.पू.आ. श्री कुलचंद्रसूरि शिष्याणु रत्नचंद्र वि. तथा हेमप्रभ वि. MISSMS is widelissfiseal

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