Book Title: Sutrakritang Sutra Author(s): Kulchandrasuri, Nyayaratnavijay, Ratnachandravijay, Hemprabhvijay Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh View full book textPage 4
________________ ।। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः।। श्री श्रमणसंघ के करकमलो में प्रस्तुत कृति भेंट करते अत्यन्त हर्ष हो रहा हैं । महान् अर्थवाले द्वितीय अंग श्री सूत्रकृताङ्गकी यह अक्षरगमनिका जिन्होने श्री शीलावाचार्य की टीका का पठन कीया हो उन वाचनादाताओं के लिए उपयुक्त हो । छास्थ की कृति में क्षति का होना स्वाभाविक है । अतः बहुश्रुत क्षतियोंको संमार्जित करे । यही एक अभ्यर्थना । आ. वि. कुलचन्द्रसूरि गोपीपुरा-सुरत भा.सु.१०२०६२.Page Navigation
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