________________
श्रुतदेवता की स्तुति
सूत्र परिचय :
इस सूत्र में श्रुतदेवी की स्तुति करके, उनसे प्रार्थना की गई है, इसलिए इसे 'सुअदेवयाथुइ' 'श्रुतदेवतास्तुति' भी कहा जाता है।
सहजानंद स्वरूप मोक्ष की प्राप्ति सम्यग् ज्ञान और सम्यग् क्रिया से होती है । सम्यग् क्रिया सम्यग् ज्ञान के बिना नहीं होती और सम्यग् ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म के नाश बिना प्रकट नहीं होता। इसलिए मोक्षार्थी साधक, इस सूत्र के माध्यम द्वारा श्रुतदेवी से श्रुतज्ञान के प्रति भक्तिवाली आत्माओं के ज्ञानावरणीय कर्म के नाश के लिए प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना से प्रसन्न श्रुतदेवी योग्य आत्माओं को श्रुतज्ञान में सहाय करके उनके कर्मक्षय में निमित्त बनती है ।
यह स्तुति पूर्व के अन्तर्गत होने से बहनों तथा साध्वीजी भगवंतों द्वारा प्रतिक्रमण में नहीं बोली जा सकती, फिर भी पाक्षिक सूत्र के अंत में यह गाथा आती है, इसलिए संघ के साथ यह गाथा बोली जाती है । ___ इस स्तुति के बदले साध्वीजी भगवंत तथा श्राविका बहनें 'कमलदल' की स्तुति बोलती हैं, जो संस्कृत भाषा में आज से ५०० वर्ष पूर्व हुए मल्लवादीसूरिजी ने बनाई होगी, ऐसी मान्यता है ।