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सूत्र संवेदना - ५
'हे प्रभु ! अनादिकाल से मैं शांति के स्वरूप को समझ भी नहीं सका। आपका शांत स्वभाव एवं उपद्रवरहित आपकी लोकोत्तर अवस्था, मेरी कल्पना का विषय भी नहीं बनी, तो फिर वास्तविक शांति का अनुभव तो मुझे कहाँ से होगा ? इसके बावजूद हे शांतिनाथ दादा ! आपकी कृपा से आपके शासन को प्राप्त कर अब सुख एवं शांति किसे कहते हैं, यह समझ में आया है। आप ही यह परम शांति देने में समर्थ हैं ऐसा विश्वास है । मेरे पास न तो प.पू. मानदेवसूरीश्वरजी म.सा. जैसा आपके गुणों का बोध है और न तो मंत्रगर्भित स्तव रचने की शक्ति । फिर भी उनकी इस स्तवना के माध्यम से आपकी स्तुति करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि इस स्तवना के प्रभाव से मुझे और जगत् के जीवों को आपके जैसी श्रेष्ठ शांति प्राप्त हो और सभी निर्विघ्न रूप में साधना के मार्ग में आगे बढ़ें !”
अब पाँच गाथाओं में विविध नामों से शांतिनाथ भगवान की स्तुति की गई है, इसलिए उसे 'श्री शांतिजिन पंचरत्न स्तुति' कहते हैं ।
गाथा :
ओमिति निश्चितवचसे नमो नमो भगवतेऽर्हते पूजाम् । शान्ति-जिनाय जयवते यशस्विने स्वामिने दमिनाम् ||२||
अन्वय :
'ओम् इति निश्चितवचसे 'भगवते 'पूजाम् अर्हते ।
"जयवते 'यशस्विने 'दमिनाम् स्वामिने शान्ति-जिनाय नमो नमः ।।२।।