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लघु शांति स्तव सूत्र भी सामान्य जनसमूह से कई ज़्यादा विशेष ज्ञान, माहात्म्य, रूप आदि गुण देखने को मिलते हैं, इसलिए जैसे अल्प धनवाला व्यक्ति भी धनवान कहलाता है, वैसे ही लोक से ज़्यादा और विशेष प्रकार के ज्ञान, रूप आदि के कारण देवी को 'भगवती' कहने में दोष नहीं है।
ऐसे संबोधन से स्तवनकार ने विजयादेवी का पुण्य प्रभाव और शासन सेवा के लिए उपयोगी बल और प्रयत्न कितने विशिष्ट हैं, यह बताया है। पुनः इतना अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि पू. मानदेवसूरीश्वरजी म.सा.ने देवी को रूप या ऐश्वर्यादि के लिए मान नहीं दिया है; पर उनकी शासन की सेवा-भक्ति करने की शक्ति के प्रति आदर व्यक्त किया है। ऐसी शक्ति को ध्यान में रखकर ही उनको 'भगवती' कहकर संबोधित किया गया है। विजये - हे विजया ! (आपको नमस्कार हो ।)
जैनशासन की उन्नति को नहीं सहनेवाले जब-जब शासन के ऊपर आक्रमण करते हैं तब-तब विजयादेवी उनका सामना करने में कभी पीछे नहीं हटतीं। वे किसी से भी पराजित नहीं हुई हैं। इसीलिए स्तवनकार ने उनको 'विजये !' कहकर संबोधित किया है ।
सुजये ! - हे सुजया ! (आपको नमस्करा हो ।) जयादेवी ने केवल विजय को ही प्राप्त नहीं किया है; बल्कि उनकी जय न्याय-नीतिपूर्वक होती है। कायर पुरुष की तरह उन्होंने जीत प्राप्त करने के लिए कभी अन्याय-अनीति का सहारा नहीं लिया। वीर पुरुष को शोभे ऐसी उनकी जय है। शत्रुओं के ऊपर जय प्राप्त करने के बाद भी कीर्ति, प्रतिष्ठा, प्रभाव, प्रताप की वृद्धि ही हो ऐसा नहीं होता जब कि विजयादेवी की न्याय से प्राप्त जय सर्वत्र आदरणीय बनी है। इसीलिए उनको 'विजये !' रूप में संबोधित करने के बाद स्तवनकार उनको ‘सुजये !' कहकर संबोधित करते हैं ।