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लघु शांति स्तव सूत्र
१०५ प्रकार जो भी द्रव्य, क्षेत्र, काल, वचन या व्यक्ति मोक्षमार्ग में सहायक बनते हैं, उनको भी मोक्ष दिलानेवाला कहते हैं। वैसे ही विजया देवी भी मोक्षमार्ग की साधना निर्विघ्न करने के लिए सहायक सामग्री उपलब्ध करवाती हैं। इसलिए वे भी निर्वृत्तिदा और निर्वाणदा कहलाती हैं।
सत्त्वानां31 अभय-प्रदान-निरते ! (भव्य) जीवों को प्रकर्ष से अभयदान देने में तत्पर रहनेवाली हे देवी ! (आपको नमस्कार हो।) __ “हे देवी ! आप भव्य प्राणियों को अभय32 देनेवाली हैं ।" जीव जब भयभीत हो, तब उसे यदि विशेष शक्तिसंपन्न व्यक्ति की सहायता मिल जाए, तो वह आंशिक निर्भय बन सकता है। विजयादेवी विशिष्ट शक्ति संपन्न हैं। इसलिए उनकी स्मृति या उनकी उपस्थिति भी भय उत्पन्न करवानेवाले दुष्ट देवताओं आदि को दूर करती है। इस प्रकार विजयादेवी साधक को निर्भय करके उसे साधना करने में सहायक बनती हैं। इसीलिए उन्हें 'अभयदा' कहा गया है।
नमोऽस्तु33 स्वस्ति-प्रदे तुभ्यं - प्रकर्ष से कल्याण देनेवाली हे देवी ! आपको नमस्कार हो ।
“हे देवी! आप भव्य प्राणियों को प्रकर्ष से कल्याण देनेवाली हैं ।" कल्याण का अर्थ सुख और आरोग्य है। जैसे देवी संघ और श्रमण 31. जगत्-मंगल-कवच की रचना में 'सत्त्व' से हाथ को ग्रहण करना है और जैसे 'भव्य' शब्द से दिव्य और उत्तम उपासकों को ग्रहण किया वैसे 'सत्त्व' से वीर जैसे मध्यम कक्षा के उपासक का भी ग्रहण करना है। यहाँ देवी के रूप में जयादेवी को ग्रहण करना है। प्रबोधटीका में विजया-जया ऐसी दो देवियों का उल्लेख है । कहीं शांतिदेवी के रूप में उल्लेख मिलता है। तो कहीं श्री शांतिनाथ भगवान
की अधिष्ठायिका निर्वाणी देवी का भी उल्लेख है। 32. भय सात प्रकार के हैं। उनके विशेष वर्णन के लिए देखें, नमोत्थुणं सूत्र । 33. 'नमो' के लिए देखे गाथा नं. ७