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लघु शांति स्तव सूत्र करके भी संघ को आपत्ति से बाहर लाने का प्रयत्न करते हैं। देवी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाकर संघ की भक्ति करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और साथ ही उनको कहीं भी पराजय नहीं होने का आशीर्वाद भी देते हैं।
भवतु नमस्ते - (हे विजयादेवी!) आपको नमस्कार हो ! इन पदों द्वारा विजयादेवी को नमस्कार किया गया है। ‘नमस्' अव्यय का सामान्य अर्थ नमस्कार है । नमस्कार अर्थात् आदर और बहुमान को सूचित करती हुई क्रिया। अतः ऊपरी दृष्टि से भले ऐसा लगे कि प.पू. मानदेवसूरि म.सा. शांतिनाथ प्रभु की सेवा में सतत हाज़िर रहनेवाली, प्रभु की तथा अपनी परम भक्त विजयादेवी को नमस्कार कर रहे हैं; परन्तु वास्तव में 'नमस्' यह निपात अव्यय है। उसके अनेक अर्थ होते हैं। यहाँ इस अव्यय के प्रयोग द्वारा विजयादेवी के प्रति आदर-बहुमान व्यक्त किया गया है । सूत्रकार सूरीश्वरजी बताते हैं कि, 'विजयादेवी ! आप संघ सुरक्षा, शासन सेवा या संयमी की वैयावच्च आदि जो कार्य करती हैं, उसके कारण मुझे आपके प्रति मान और सद्भाव है। आपके इस कार्य की भूरि-भूरि अनुमोदना करता हूँ। इस रूप में मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।"
जिज्ञासा : छठे-सातवें गुणस्थानक में रहनेवाले प.पू.मानदेवसूरीश्वरजी महाराज क्या चौथे गुणस्थानक में रहनेवाले देव-देवी को नमस्कार कर सकते हैं ?
तृप्ति : सामान्यतया तो यही कहना पड़ता है कि, नहीं ! एक आचार्य से चौथे गुणस्थानक वाले देव-देवी को नमस्कार नहीं किया जा सकता, परन्तु गीतार्थ पूज्य मानदेवसूरीश्वरजी महाराज ने यहाँ जो नमस्कार किया है वह मात्र उनके प्रति आदरभाव को व्यक्त करने के