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लघु शांति स्तव सूत्र
१०१ कि साधु या साध्वी को कोई देव या मनुष्य से उपद्रव हो रहा है वे तुरन्त वहाँ पहुँच कर उनके उपद्रवों को दूर कर साधुओं की संयम साधना में सहायक बनती हैं।
देवी साधुओं को संतुष्टि अर्थात् सम्यग् प्रकार का चित्त संतोष भी प्रदान करती हैं। सुंदर संयम पालन की उत्कट भावना में तल्लीन संयमी आत्माओं को उनकी संयम यात्रा सुन्दर रूप से हो, इसी में आनंद, उत्साह और संतोष होता है। इसके बावजूद कभी प्रतिकूल परिस्थिति या कमज़ोर निमित्त उनके मन को विह्वल बना देते हैं, तब उत्तम मनोरथ कमज़ोर पड़ जाते हैं और शुभ संकल्प टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। ऐसे समय में याद की गई विजयादेवी, अनुकूल वातावरण बनाकर संयमी आत्मा के चित्त को संतोष दिलाकर उनके मन को आनंद में रखने का प्रयत्न करती हैं। इसीलिए उनको सुतुष्टिदा कहते हैं ।
मुनि भगवंतों को देवी पुष्टि देनेवाली हैं। पुष्टि का अर्थ पोषण है। देवी ज्ञानादि गुणों या धर्म कार्यों की वृद्धि करती हैं। यद्यपि आत्मा में प्रकट होनेवाले गुणों का विकास साधक को स्वयं करना पड़ता है; फिर भी इन गुणों के विकास में कुछ कुछ सामग्री, संयोग या वातावरण सहायक ज़रूर बनते हैं। देवी ये सभी वस्तुएँ देकर एवं दिलाकर गुणविकास में ज़रूर सहाय करती हैं। जैसे कि ज्ञानगुण के विकास के लिए ज़रूरी सद्गुरु, सद्ग्रंथ, सानुकूल वातावरण वगैरह सभी की पूर्ति करने के लिए देवी संभावित सभी प्रयत्न करती हैं। इस प्रकार वे संयमी आत्मा की गुणवृद्धि करनेवाली बनती हैं, जिससे उनको पुष्टिदा कहते हैं। जीया: - (हे जया देवी) ! आप जय को प्राप्त करें ।