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सूत्र संवेदना-५ प्रभु जब साक्षात् विचरते थे, तब वे धर्मदेशना द्वारा जगत् के लोगों को अहितकारक मार्ग से दूर कर हितकारी मार्ग में स्थिर करते थे। इस तरह वे तीनों जगत् के लोगों का पालन करने में उद्यत थे और वर्तमान में उनके वचनामृत का जिसमें संग्रह हुआ है वैसे शास्त्र संसार के जीवों को सत् पथ-दर्शन कराने द्वारा पालन करने में उद्यत हैं। इसलिए परमात्मा तीनों भुवन के लोगों का पालन करने में उद्यमशील कहे जाते हैं।
सततं नमस्तस्मै - उन शांतिनाथ भगवान को मेरा बार-बार नमस्कार हो!
जो शांतिनाथ भगवान इन्द्रों से पूजित हैं, किसी से भी हारे नहीं और तीनों जगत् का पालन करने में उद्यत हैं, उन शांतिनाथ भगवान को मेरा नमस्कार हो ! यह गाथा बोलते हुए साधक सोचे कि,
"हे प्रभु ! आपका कैसा अचिंत्य प्रभाव है कि खुद देवेन्द्र भी आपकी पूजा करने के लिए तत्पर हैं। आपका प्रताप भी कैसा है कि शत्रुओं को जीतने के लिए आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती और आपकी करुणा भी कैसी है कि विश्व पालन में आपकी कोई जिम्मेदारी न होने पर भी आप विश्व का पालन करने के लिए उद्यमशील हैं। त्रिभुवन के रक्षणहार हे प्रभु ! आपको पुनः पुनः नमस्कार करता हूँ और एक प्रार्थना करता हूँ कि ये कषाय रूपी चोर सदैव मुझे लूट रहे हैं, आप कृपा करके उनसे मेरी रक्षा करें ।"