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लघु शांति स्तव सूत्र
६७ सामान्य शब्दों के बजाए विशिष्ट मंत्रों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया है ।
मंत्रों से युक्त इस रचना की प्रथम गाथा में दूसरी भी अनेक विशेषताएँ हैं, जैसे कि इस गाथा में 'श' शब्द का प्रयोग आठ बार किया गया है। 'श' शब्द शांतिमय सुखद स्थिति का निदर्शक होने से मंगलरूप है और आठ बार इसका प्रयोग अष्टमंगल की पूजा स्वरूप है।
मंगलाचरण के साथ ही इस प्रथम गाथा में हर एक ग्रंथ के प्रारंभ में बताया जानेवाला अनुबंधचतुष्टय भी सूचित किया गया है। 'शान्तिं नमस्कृत्य' इस पद द्वारा इष्ट देवता को नमस्कार रूप मंगलाचरण किया गया है, 'स्तोतुः शान्तये' पद द्वारा प्रयोजन दर्शाया गया है और 'शान्ति- निमित्तं स्तौमि' द्वारा विषय बताया गया है, शांति इच्छुक
अधिकारी है, वह सामर्थ्य से जाना जा सकता है और 'मन्त्रपदैः' शब्द द्वारा पूर्वाचार्यों के साथ का संबंध बताया गया है। इस प्रकार विषय, संबंध, प्रयोजन और यह ग्रंथ पढ़ने का अधिकारी कौन है, ये चार बातें मंगलाचरण के साथ बताई गई हैं।
यह गाथा बोलते हुए साधक को एक तरफ परम शांति के धारक और अनेकों के लिए शांति का कारण बनने वाले शांतिनाथ प्रभु स्मृति में आते हैं, तो दूसरी तरफ अंतरंग-बाह्य उपद्रवों के कारण अशांति में डूबी हुई खुद की आत्मा दिखाई देती है। दोनों की तुलना करते हुए साधक को अपनी दुःखदायी अवस्था से छूटकर प्रभु जैसे शांत बनने की भावना होती है और उसे सफल करने के लिए साधक भाव-विभोर बनकर प्रभु से प्रार्थना करता है कि -