________________
लघु शांति स्तव सूत्र
६५ स्तोतुः शान्ति-निमित्तं मन्त्रपदैः शान्तये स्तौमि - स्तुति करनेवाले की शांति के लिए मैं शांति करने में निमित्तभूत (ऐसे शांतिनाथ भगवान की) मंत्र गर्भित पदों से स्तुति करता हूँ।
स्तोतुः शान्तये - स्तुति करनेवाले की शान्ति के लिए। ‘जो व्यक्ति शांतिनाथ भगवान की स्तुति करता है उसे शांति मिलती ही है, इसलिए मैं शांतिनाथ भगवान की स्तुति करता हूँ।' यह कहते हुए इस स्तव की रचना का प्रयोजन बताया गया है ।
तक्षशिला नगरी में जब व्यंतरी ने महामारी का उपद्रव फैलाया था, तब श्रीसंघ की आराधना में बहुत बड़ा विघ्न आ गया था । इस स्थिति का ख्याल आते ही श्रीसंघ के प्रति वात्सल्य रखनेवाले प. पू. मानदेवसूरीश्वरजी महाराज ने जैनशासन की पवित्र पाट परंपरा में हुए अनेक आचार्यों की भांति, श्रीसंघ की आराधना को प्रज्वलित रखने के एक मात्र उद्देश्य से, श्रीसंघ की शांति के लिए मंत्राधिष्ठित इस स्तोत्र की रचना की थी । इसलिए प्रारंभ की इस गाथा में पूज्यश्री कहते हैं कि 'स्तुति करनेवाले की शांति के लिए मैं शांतिनाथ भगवान की स्तवना करता हूँ ।'
इस तरह जब इस स्तव की रचना हुई, तब उसका तत्काल एवं मुख्य प्रयोजन उपद्रव शांत करना ही था और आज भी वही है, तो भी इस स्तव की यह ताकत है कि, जब भी साधक इस स्तव के द्वारा शांतिनाथ भगवान की स्तुति करता है, तब बाह्य उपद्रव के साथ-साथ उसके कषाय या कर्म द्वारा उत्पन्न हुए आंतरिक उपद्रव भी शांत हो जाते हैं और सुख-शांति का अनुभव करते हुए वह परम सुख एवं शांति के धाम रूप मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है।