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सूत्र संवेदना - ५
तृप्ति : यह संपूर्ण स्तव एक विशिष्ट मंत्र स्वरूप है। इसलिए यहाँ मंत्र प्रयोग रूप में 'नमो' शब्द का उच्चारण दो बार किया गया है और हर्ष के आवेग में या स्तुति आदि करते हुए जहाँ एक शब्द दो बार बोला जाए, वहाँ पुनरुक्ति दोष नहीं लगता । जैसे कोई आदरणीय व्यक्ति आए, तब बहुमानपूर्वक सहजता से ही “ आइए आइए आइए " ऐसे शब्द निकल जाते हैं। आदर प्रदर्शित करने के लिए इस प्रकार एक ही शब्द का बार-बार उच्चारण दोषरूप नहीं बनता ।
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२. भगवते भगवान को मेरा नमस्कार हो')
भगवान को अर्थात् ऐश्वर्यादि युक्त (उन 'शांतिनाथ
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भग' अर्थात् ऐश्वर्य, रूप, बल वगैरह । 'भग'वाले को भगवान कहा जाता है अर्थात् सर्वश्रेष्ठ कोटि का रूप, अनंत बल, सबसे बढ़कर ऐश्वर्य, अनंतज्ञानादि लक्ष्मी वगैरह गुण जिनमें हों, उन्हें भगवान कहते हैं। शांतिनाथ भगवान में ये सब गुण हैं, इसलिए उन्हें 'भगवान' कहकर नमस्कार किया गया है।
३. अर्हते पूजाम् - पूजने योग्य (ऐसे शांतिनाथ भगवान को मेरा नमस्कार हो ।)
अर्हत् अर्थात् योग्य। शांतिनाथ परमात्मा उनके विशिष्ट गुणों के कारण उत्तम द्रव्यों और उत्तम भावों से जगद्वर्ती जीवों के वंदन, पूजन, सत्कार आदि के लिए अत्यंत योग्य हैं। इसके अतिरिक्त ३४ अतिशय रूपी महासमृद्धि के पात्र भी हैं, इसलिए उन्हें अर्हत् कहा गया हैं।
8. 'भग' शब्द की विशेष समझ के लिए सूत्र संवेदना भाग-२ में से नमोत्थुणं सूत्र देखें । 9. अतिशयपूजार्हत्वाद् अर्हन्तः स्वर्गावतरणजन्याभिषेक-परिनिष्क्रमण- केवलज्ञानोत्पत्तिपरिनिर्वाणेषु
देवकृतानां पूजानां देवासुरमानवप्राप्तपूजाभ्योऽधिकत्वाद् अतिशयानामर्हत्वाद् अर्हन्तः ।
• षट्खंड ।