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सूत्र संवेदना-५ सदस्य दर्शन करके वहीं खड़े रहे । जब ध्यान दशा पूर्ण हुई तब संघ के विवेकी सदस्यों ने सूरिजी को अपने गाँव की स्थिति से वाकिफ किया और वहाँ पधारने की आग्रहपूर्वक विनती की, परन्तु बहुत सी प्रतिकूलताओं के कारण पूज्यश्री स्वयं न पधार सके । श्रीसंघ के प्रति अत्यंत वात्सल्य भाव होने से पूज्यश्रीने तुरंत ही यह 'शांतिस्तव' बनाया
और अपना पादप्रक्षालन तथा इस स्तोत्र को श्रीसंघ को अर्पित किया। श्रावक पाद-प्रक्षालन का जल लेकर अपने गाँव वापस आए । अन्य जल के साथ वह जल मिलाकर पूरे गाँव में उसका छिड़काव किया
और साथ ही 'शांतिस्तव' का पाठ भी किया गया । उसके प्रभाव से उपद्रव दूर हुआ और पूरे गाँव में शांति फैल गई ।
इस स्तोत्र का ऐसा अचिन्त्य प्रभाव देखकर संघ की शांति के लिए गीतार्थ गुरु भगवंतों ने रोज देवसिक प्रतिक्रमण के अंत में इस स्तोत्र को बोलना शुरू करवाया ।
इस स्तव में शांतिनाथ भगवान की तथा उनके प्रति परम भक्तिवाली श्री शांतिदेवी की स्तुति की गई है । इस शांतिदेवी के जया
और विजया नामक दो स्वरूप हैं । __ आर्या छंद से अलंकृत उन्नीस श्लोकों में रचित यह शांति स्तव पाँच विभाग में विभाजित हो सकता है । | विषय
गाथा नं. मंगलाचरण २. | शांतिनाथ भगवान की पंचरत्न स्तुति २ से ६ ३. जया और विजया देवी की नवरत्नमाला स्तवना ७ से १५ ४. स्तवना का फल
१६, १७ ५.| भगवद भक्ति और जैनशासन का महत्त्व १८, १९
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