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लघु शांति स्तव सूत्र
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मंगलाचरण :
इस स्तव की प्रथम गाथा में अनुबंध चतुष्टय के साथ श्री शांतिनाथ भगवान के बाह्य और अंतरंग स्वरूप का दर्शन करवानेवाले तीन विशेषणों से उनको नमस्कार करने स्वरूप मंगलाचरण किया गया है । पंचरत्न स्तुतिः
दूसरी गाथा से छट्ठी गाथा तक नाम मंत्र की स्तुति है, इसलिए इन पाँच गाथाओं को 'श्री शांतिजिन पंचरत्नस्तुति' कहा जाता है। इसमें सोलह विशेषण स्वरूप सोलह नाम द्वारा शांतिनाथ भगवान की विशेषता बताकर उनकी सविशेष स्तवना की गई है। नवरत्नमाला स्तवना :
सातवीं से पंद्रहवीं तक की नौ गाथाओं में शांतिनाथ भगवान की स्तवना से संतुष्ट विजया देवी के स्वरूप और जगत् का हित करने की उनकी शक्ति का सुंदर वर्णन करते हुए चौबीस विशेषणों से उनकी स्तवना की गई है। इन नौ गाथाओं को 'जया-विजया नव रत्नमाला' कहा जाता है। स्तवन का फल और स्तवनकर्ता का नामोल्लेख :
स्तवना करने के बाद सोलहवीं गाथा में प. पू. मानदेवसूरीश्वरजी महाराज ने स्पष्ट किया है कि यह विशिष्ट रचना मैंने अपनी बुद्धिकल्पना से नहीं की है, परंतु पूर्वाचार्यों द्वारा दर्शाए गए मंत्रों को जोड़ने मात्र का कार्य किया है। ऐसा बताकर पूज्यश्री ने सूचित किया है कि इस स्तव की रचना गुरु आम्नायपूर्वक हुई है। इसके साथ ही यहाँ यह भी बताया गया है कि, यह स्तव भक्तजनों को भौतिक क्षेत्र में आनेवाले भय का निवारण कर शांति प्रदान करता है । यह स्तव मात्र भौतिक सुख ही नहीं; परन्तु आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त करवाता है,