Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni, Mahayashashreeji
Publisher: Omkar Gyanmandir Surat
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कल्लोलजलपलावियफलयगलंतोरुबिंदुअंसूहिं । झयइव्व संमस्सियजणोहपरिरक्खणाऽसत्ता ॥ २०४ ॥ विहडियबंधणफलहोहमुक्कगुरुसद्दविप्पलावेहिं । आसन्नभंगभीयव्व विलर्वई सरणपरिहीणा ॥ २०५ ॥ उम्मत्तियव्य तत्तो इओ तओ सायरम्मि भममाणा । अववरयं विदलंता जलगयमामयसरावुव्व ॥ २०६ ॥ उच्चन्नकन्नधारा आउलविलवंतकोलियकुलोहा । उत्तत्थवणियसत्था उद्धयकंदंतकम्मयरा ॥ २०७ ॥ कच्छोट्ठेतरगोवियसुवन्नखंडम्मि जणसमूहम्मि । नियतणुसंदामियफलयखंडदक्खम्मि वणिनियरे ॥ २०८ ॥ नियकुलदेवयनियरं ओवार्यते समत्थलोयम्मि । नावियजणे य भंडं पविक्खिरंते समुद्दम्मि ॥ २०९ ॥
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कल्लोलजलप्लावितफलकगलतुरुबिन्द्वश्रुभिः ।। रुदतीव समाश्रितजनौघपरिरक्षणाऽऽसक्ता ॥ २०४ ॥ . विघटितबन्धनफलकौघमुक्तगुरुशब्दविप्रलापैः । आसन्नभगभीत इव विलपन्ती शरणपरिहीणा ॥ २०५ ॥ उन्मत्तिकेव तत इतस्ततः सागरे भ्राम्यंती । अनवरतं त्रुट्यन्ती जलगतामयसराव इव ॥ २०६ ॥ उद्विग्नकर्णधाराऽऽकुलविलपत्कौलिककुलौघा । उत्त्रस्तवणिक्सार्था उद्धतक्रन्दत्कर्मकराः ॥ २०७ ॥ कच्छोट्टन्तर्गोपितसुवर्णखण्डे जनसमूहे । निजतनुसंदामितफलकखण्डदक्षे वणिग्निकरे ॥ २०८ ॥ निजकुलदेवनिकरं उपयाचमाने समस्तलोके । नाविकजने च भाण्डं प्रक्षिपति समुद्रे ॥ २०९ ॥
१. पलावियं = प्लावितम् । २. समस्सिओ = समाश्रितः । ३. विदलंता = त्रुटयन्ती । ४. आमं - अपक्वम् । ५. कर्मकरः = दासः । ६. उपयाचमाने ।
सुरसुन्दरीचरित्रम्
त्रयोदश: परिच्छेदः
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