Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni, Mahayashashreeji
Publisher: Omkar Gyanmandir Surat
________________
अज्जुण- भएण हरिंणी गुरु-हारा वेग-धाविया सहसा । संजय - पसव - समया वियेणा-विहलंघला पडिया ॥ २०४ ॥
नट्ठो सारंगवि हु पुणो पुणो अज्जुणं निरुविंतो ।
दइया - विओग - विहुरिय - हियओ गुरु-सोय- संतत्तो ॥ २०५ ॥ करुणापरेण नीया हरिणीवि हु अज्जुणेण नियठाणं । सीयलजलेण सित्ता मुच्छा-1 - विरमे पसूया य ॥ २०६ ॥ जायं कोड्डावणयं हरिण-सिलिंर्बे तु मुद्धड-सहावं । हरिणीइ वट्टियं तं दिन्नो य थणो तओ तस्स ॥ २०७ ॥ दट्ठू तं सुरुवं विलास - सुसिणिद्ध - नयण-सोहिल्लं । बंधुसिरीए भणियं मह होइ खिल्लणं एयं ॥ २०८ ॥
तत्तो य वाम पाए बद्धं तं कोमलाइ रज्जूए । हरिणीवि विगय - वियणा भएण नट्ठा तयं मोतुं ॥ २०९ ॥
अर्जुनभयेन हरिणी गुरुभारा वेगधाविता सहसा । सञ्जातप्रसवसमया वेदनाविह्वला पतिता ॥ २०४ ॥ नष्टः सारङ्गोऽपि हु पुनः पुनोऽर्जुनं निरूपयन् । दयितावियोगविधुरितहृदयो गुरुशोकसंतप्तः ॥ २०५ ॥ करुणापरेण नीता हरिण्यपि हु अर्जुनेन निजस्थानम् । शीतलजलेन सिक्ता मूर्च्छाविरमे प्रसूता च ॥ २०६ ॥ जातं कोद्रववर्णकं हरिणसिलिम्बतु मुग्धस्वभावम् । हरिण्या वर्तिकं तं दत्तश्च स्तनस्ततस्तस्य ॥ २०७ ॥ दृष्ट्वा तं सुरूपं विलाससुस्निग्धनयनशोभावन्तम् । बन्धुश्रिया भणितं मम भवति खेलनमेतम् ॥ २०८ ॥ ततश्च वामपादे बद्धं तं कोमलया रज्वा । हरिण्यपि विगतवेदना भयेन नष्टा तन्मुक्त्वा ॥ २०९ ॥
१. गुरुभारा । २. वेदनाविहला । ३. कोद्रववर्णकम् । ४. सिलिंबो - शिशुः । ५. खेलनम् ।
सुरसुन्दरीचरित्रम्
Jain Education International
पञ्चदशः परिच्छेदः
For Private & Personal Use Only
६२५
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702