Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni, Mahayashashreeji
Publisher: Omkar Gyanmandir Surat
________________
॥ षोडशः परिच्छेदः ॥
राया वि मयरकेऊ परिणित्ता खयर - दिन - कन्नाओ । दाऊण नह - यराणं जहोचियं गाम-नगराई ॥ १ ॥ आणा - निद्देसकरे काउमसेसद्ध-भरह - रायाणो । नीसेस- देस-विसरं विहाय गय - डमर - चोर - भयं ॥ २ ॥ उत्तुंग-धवल-मणहर - चेइय- भवणेहिं मंडियं काउं । आरिय- देस- समुब्भव-गामागर - नगर - संदोहं ॥ ३ ॥ कर-भर-सुंक-विमुक्कं सावय - विसरं करित्तु नीसेसं । उच्छाइत्ता सव्वे जिण-सासण - संघ - पडिणीएँ ॥ ४ ॥
राजाऽपि मकरकेतुः परिणीय खेचरदत्तकन्याः । दत्त्वा नभश्चराणां यथोचितं ग्रामनगराणि ॥ १ ॥ आज्ञा- निर्देशकरान् कृत्वाऽशेषार्धभरतराजानः । निःशेषदेशविसरं विहाय गतडमरचौरभयम् ॥ २ ॥ उतुङ्गधवलमनोहरचैत्यभवनै र्मण्डितं कृत्वा । आर्यदेशसमुद्भवग्रामाकरनगरसन्दोहम् ॥ ३ ॥
करभरशुल्कविमुक्तं श्रावकनिकरं कृत्वा निःशेषम् । उच्छाद्य सर्वान् जिनशासनसड्यप्रत्यनीकान् ॥ ४ ॥
१. विसर : = समूहः । २. उच्छाद्य = उन्मूल्य । ३. पडिणीओ = प्रत्यनीकः - शत्रुः ।
सुरसुन्दरीचरित्रम्
षोडशः परिच्छेदः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
६३३
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702