Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni, Mahayashashreeji
Publisher: Omkar Gyanmandir Surat
________________
कइवय-खयर समेओ नीओ अंतेउरम्मि नर-वइणा । सुयदंसणूसूयाए पडिओ जणणीइ चलणेसु ॥ १६८ ॥ कोमलकरहिं घेत्तुं निवेसिओ तीइ निययउच्छंगे । आलिंगिओ य बहुसो य चुंबिओ उत्तिमंगम्मि ॥ १६९ ॥ आणंद-बाह-सलिलं मुंचंति भणइ वज्जघडियं ते । जणणीइ पुत्त ! हिययं जीवइ जा तुज्झ विरहम्मि ॥ १७० ॥ तो भणइ मयरकेउ किं कीरइ अंब! विविह-ललियस्स । विहिणो परव्वसाणं जायइ जं एरिसं दुक्खं ॥ १७१ ॥ परिथूल-मत्तियावलि-विहिय-चउक्कम्मि ताहि ठविऊण। सिंहासणमणवजं मणि-रयण-पहाहिं विच्छुरियं ॥ १७२ ॥ तत्थूवविट्ठस्स तओ मंगलाई कयाई तणयस्स । देवीए सुय-संगम-हरिस-वसुब्भिन्न-पुलयाए ॥ १७३ ॥
कतिपयखेचरसमेतो नीतोऽन्तःपुरे नरपतिना । सुतदर्शनोत्सुकायाः पतितो जनन्याश्चरणयोः ॥ १६८ ॥ कोमलकराभ्यां गृहीत्वा निवेशितस्तया निजकोत्सङ्गे । आलिङ्गितश्चबहुशश्चचुम्बित उत्तमाङ्गे ॥ १६९ ॥ आनन्दबाष्पसलिलं मुञ्चन्ती भणति वज्रघटितं ते । जनन्याः पुत्र! हृदयं जीवति यावत्तव विरहे ॥ १७० ॥ ततो भणति मकरकेतुः किं क्रियते अम्बे ! विविधललितस्य । विधेः परवशानां जायते यदीदृशं दुःखम् ॥ १७१ ॥ परिस्थूलमौक्तिकावलीविहितचतुष्के तदा स्थापयित्वा। सिंहासनमनवा मणिरत्नप्रभाभि-विच्छूरितम् ॥ १७२ ॥ तत्रोपविष्टस्य ततो मङ्गलानि कृतानि तनयस्य । देव्या सुतसङ्गमहर्षवशोभिन्नपुलकया ॥ १७३ ॥ १. ऊसुया-उत्सुक्ता
सुरसुन्दरीचरित्रम्
पञ्चदशः परिच्छेदः
६१९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702