Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni, Mahayashashreeji
Publisher: Omkar Gyanmandir Surat

Previous | Next

Page 647
________________ अह अमरकेऊ राया तेसिं काऊण सयल-पडिवत्तिं । बहुखज्जपिज्जजुत्तं कारइ वीवाह-सामग्गिं ॥ १८६ ॥ निय-कुल-कमागएणं विहिणा पत्तम्मि लग्गदियहम्मि । आणंदियपउर-जणं नच्चंतविलासिणिसणाहं ॥ १८७ ॥ वजंत-वज्ज-आउज्ज-गहिर-संसद्द-पूरिय-दियंतं । वत्तं पाणि-ग्गहणं महाविभूईए अह तेसिं ॥ १८८ ॥ समुचियपडिवत्तीए खयरा संमाणिया नरिंदेण । दिन्नं च महा-दाणं पउराई भोजिओ लोओ ॥ १८९ ॥ जिण-मंदिरेसु विहिया महिमा परमायरेण सव्वेसु । जिण पडिमाणं वत्थाएहिं विविया महा-पूया ॥ १९० ॥ वर-वत्थ-पत्त-कंबल-असणाईएहिं समणसंघोवि । सव्वोवाहि-विसुद्धेहिं पूइओ परमभत्तीए ॥ १९१ ॥ अथ अमरकेतु राजा तयोः कृत्वा सकलप्रतिपत्तिम् । बहुखाद्यपेययुक्तां कारयति विवाहसामग्रीम् ।। १८६ ।। निजकुलक्रमागतेन विधिना प्राप्ते लग्नदिवसे । आनन्दितपौरजनं नृत्यत्विलासिनिसनाथम् ।। १८७ ।। वाद्यमानवर्यातोद्यगभीरसंशब्दपूरितदिगन्तम् । वृत्तं पाणिग्रहणं महाविभूत्याऽथ तयोः ।। १८८ ॥ युग्मम् ।। समुचितप्रतिपत्त्या खेचराः सन्मानिता नरेन्द्रेण । दत्तं च महादानं पौरादि-भोजितो लोकः ।। १८९ ।। जिनमन्दिरेषु विहिता महिमा परमादरेण सर्वेषु । जिनप्रतिमानाम् वस्त्रादिभि-विहिता महापूजा ।। १९० ॥ वरवस्त्रपात्रकम्बलासनादिकैः श्रमणसंघोऽपि ।। सर्वोपाधिविशुद्धैः पूजितः परमभक्त्या ॥ १९१ ।। १. बहुखाद्यपेययुक्तम् । २. इओ । ३. युग्मम् । ६२२ पञ्चदशः परिच्छेदः सुरसुन्दरीचरित्रम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702