Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni, Mahayashashreeji
Publisher: Omkar Gyanmandir Surat

Previous | Next

Page 596
________________ अह अन्नया कयाइवि कणयरहो तुरयवाहणनिमित्तं । डचडयरेण सहिओ निग्गच्छइ रायमग्गेण ॥ १३२ ॥ ताव य नायरियाओ नियनियहम्मियतलेसु चडिऊण । कुमरं निग्गच्छंतं पुलइउमेवं पयत्ताओ ॥ १३३ ॥ एक्का विलासपउरं कुमरं दठ्ठे अणंगपडिरूवं । कयैउन्ना सा जीएँ एसो दइओत्ति चिंते ॥ १३४ ॥ अन्ना कुमरपलोयणतग्गयचित्ता विमुक्कवावारा । निष्कंदलोयणजुया सुरवहूलीलं समुव्वहइ ॥ १३५ ॥ अन्ना उण करसंठियमुत्ताहलतारहारिया सहइ । फलिहक्खमालवावडझाणट्टियजोगिणिसरिच्छा ॥ १३६ ॥ कोउँगरहसपयट्टा गुरुजणसंकाइ तह निती । रेहइ दोलारूढव्व कावि कुमरस्स निग्गमणे ॥ १३७ ॥ अथान्यदा कदाचिदपि कनकरथस्तुरगवाहननिमित्तम् । भटपटलेन सहितो निर्गच्छति राजमार्गेण ॥ १३२ ॥ तावच्च नागरिक्यः निजनिजहर्म्यतलेषु चटित्वा (आरुह्य ) । कुमारं निगच्छन्तं दृष्टुमेवं प्रवृत्ताः (प्रयताः ) ॥ १३३ ॥ एका विलासप्रचुरं कुमारं दृष्ट्वाऽनङ्गप्रतिरूपम् । कृतपुण्या सा यस्या एष दयित इति चिन्तयति ॥ १३४ ॥ अन्या कुमारप्रलोकनतद्गतचित्ता विमुक्तव्यापारा । निष्पन्दलोचनयुगा सुरवधूलीलां समुद्वहति ॥ १३५ ॥ अन्या पुनः करसंस्थितमुक्ताफलतारहारिका राजते । स्फटिकाक्षमालाव्यापृतध्यानस्थितयोगिनीसदृशी ॥ १३६ ॥ कौतुकरभसप्रवृत्ता गुरुजनशङ्क्या तथा निवर्तमाना । राजते दोलरूदेव काऽपि कुमारस्य निर्गमने ॥ १३७ ॥ १. भटपटलेन । २. नागरिक्यः । ३. कृतपुण्या । ४. यस्याः । ५. राजते ६. स्फटिकाक्षमालाव्यापृतध्यानस्थितयोगिनीसद्दशी । ७. कौतुकरभसप्रवृत्ता । ८. निवर्तमाना । सुरसुन्दरीचरित्रम् Jain Education International चतुर्दशः परिच्छेदः For Private & Personal Use Only ५७१ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702