Book Title: Sumitra Charitram Author(s): Harshkunjar Upadhyay Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 4
________________ अर्थ-तेथी पाणीओए निरंतर मुखने आपवावाळो ए धर्म अवश्य सेवन करवा योग्य छे. ते धर्म दान, शील, तप ने भावएम चार प्रकारनो छे // 8 // तत्रापि प्रथमं दान-मुक्तं तीर्थकरैर्वरैः // येनेह सफलं जन्म / जायते गृहमेधिनां // 9 // अर्थ-तेमां पण तीर्थकरोए प्रथम दानधर्म कहेलो छे के जे धर्मना आराधनथी गृहस्थनो मनुष्य जन्म सफळ थाय छे // 9 // नसत्पात्रेभ्यः पुनर्दत्त-माहारादिकमिच्छया // संपत्करं भवेऽमुत्र / विपन्निर्नाशकं भवेत् // 10 // ____अर्थ-भावपूर्वक सत्पात्र प्रत्ये आपेलं आहारादिकनुं दान आ भवमां संपत्तिने आपनारुं अने परभवमा सर्व प्रकारनी विपत्तिनो नाश करनारुं थाय छे // 10 // मध्याहे च यथा साधो-भक्त्या दत्तं विशालया। सुमित्रस्य समित्रस्य / सकलत्रस्य चाभवत् // 11 __ अर्थ-के जेवी रीते मध्यान्हे विशाळ भक्तिपूर्वक साधुने आपेलुं अन्नदान मित्र अने स्त्री सहित सुमित्रकुमारने महाफळनु आपनार थयेल छे // 11 // तथाहि सुंदरो जंब-मायरच्छत्रमंडितः // जंवनामास्त्यसौ रम्यो / द्वीपराजो महीतले // 12 // ___अर्थ-आ पृथ्वीतळ उपर जंबृवृक्षरुप मयूरछत्रथी मंडित जंबू नामनो सर्वद्वीपना मध्यमां मुशोभित द्वीप छे // 12 // - सर्वे द्वीपसमुद्रा यं / सीमाला इव सेवितुं // यञ्चतुर्दिक्षु वर्तते / स्वगुणैर्निर्जिता इव // 13 // DDDDDDDDDDDDDDDDननननननल P.P.Ac Guntatrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TrustPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 126