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समसामयिक समस्याओं के संदर्भ में प्राचीन जैन संस्कृति की प्रासंगिकता
डॉ. जिनेन्द्र जैन
विचारों एवं अनुभवों का विनिमय ही संस्कृति है। संस्कृति आदर्श प्रस्तावित करती है और आदर्श प्रगति को प्रेरित एवं दिशा-निर्देशित करते हैं। विखण्डित होती परिवार प्रणाली, कुण्ठा व तनावग्रस्त मानव, विवादों से घिरा समाज, जातिवाद व अलगाववाद, आतंकवाद युवा पीढ़ी का नैतिक पतन, गिरता स्वास्थ्य, असंतुलित होता पर्यावरण एवं अन्य समस्याओं से ग्रसित विश्व समुदाय को दिशा-निर्देशन की आवश्यकता है। प्राचीन जैन धर्म एवं संस्कृति इस उद्देश्य की पूर्ति में सक्षम है। अनुसंधान में नवीन तथ्यों की खोज एवं उनका संकलन ही पर्याप्त नहीं है बल्कि समसामयिक आवश्यकता एवं उपयोगिता के अनुसार तथ्यों की व्याख्या अनुसंधान में जरूरी है। मनोवैज्ञानिक समस्याएँ जैन धर्म व दर्शन के सिद्धांत व्यक्ति की व्यक्तिगत, सामाजिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर की अनेक वर्तमान ज्वलंत समस्याओं के समाधान में सक्षम हैं। मानव मात्र स्तर पर विचार करने पर यह यह तथ्य स्पष्ट होता है कि वर्तमान में हर वर्ग में तनाव, कुण्ठा, द्वन्द व संत्रास व्याप्त है। वर्तमान दौर में इसके कारण अनेक रोग उत्पन्न हो रहे है, इसी समस्या को लेकर "आर्ट ऑफ लिविंग" एवं योग केन्द्र जैसे उपाय अपनाए जा रहे हैं। व्यक्ति की इन व्यक्तिगत समस्याओं के लिए जैन धर्म के सिद्धांत बेहतर समाधान प्रस्तुत करते है। मानसिक समस्याएँ अनियंत्रित मन के कारण उत्पन्न होती हैं। मानव मन बड़ा चंचल है, उसमें क्षण-क्षण में नाना प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं। वह विचार समसामयिक वातावरण से भी प्रभावित होते हैं, कुछ विचार व्यक्ति की व्यक्तिगत मानसिकता की उपज भी होते हैं। ईष्या द्वेष, अहं, अस्तित्व एवं भौतिकवादी प्रतिस्पर्धा आदि विचारों से व्यक्ति को अनेक प्रकार के मानसिक कष्टों, आकुलताओं एवं व्यग्रता का सामना करना पड़ता है और इसी कारण तनाव व कुण्ठा उत्पन्न होती है। तनाव और कुण्ठा से मानव शरीर में अनेक रसायनिक परिवर्तन होते है जिससे अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। मन की आकुलता व व्यग्रता को मिटाने के लिए एवं मानसिक नियंत्रण हेतु जैन धर्म में द्वादशानुप्रेक्षा चिन्तन का निर्देश है। यह बारह भावनाएँ इस प्रकार है-अनित्य, अशरण, एकत्व अन्यत्व, संसार लोक, अशुचि आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोध दुर्लभ ।' इन बारह अनुप्रक्षाओं के चिन्तन से आत्मा में तत्व ज्ञान की जागृति होती है और अपूर्व मानसिक शांति प्राप्त होती है। विषयवासनाओं एवं मन की चंचलता से अन्य अनेक जो मानसिक व्याधियाँ होती है, उनको जैन धर्म की समीक्षण ध्यान विधि से दूर किया जा सकता है। मन गतिशील है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह विश्रांति नहीं
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