Book Title: Sumati Jnana
Author(s): Shivkant Dwivedi, Navneet Jain
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 413
________________ वीरसिंहपुर (पाली) से प्राप्त तीर्थकर ऋषभनाथ प्रतिमा - एक विश्लेषण डॉ. एस. के. द्विवेदी एवं एस. डी. सिसौदिया जैन धर्म अन्य प्रमुख धर्मों की तरह ही अत्यंत प्राचीन है। इसका विकास औपनिषदिक विचारधारा के आधार पर हुआ। जैन धर्म एवं दर्शन के अन्तर्गत ईश्वर की सत्ता को अधिक महत्व नहीं दिया गया है। वस्तुतः यह विचारधारा कालान्तर में तांत्रिक अधिष्ठान पर विकसित हुई। लगभग आठवीं सदी ई. के पश्चात् जैन धर्म के अन्तर्गत अनेक देवी-देवताओं की परिकल्पना हुई और भारतीय कला में उन्हें मूर्त रूप मिला। चौबीस तीर्थकरों को देवाधिदेव के रूप में प्रतिष्ठा मिली। पूर्व मध्यकाल में जैन धर्म का विकास ब्राह्मण धर्म से संबंधित देवी-देवताओं के सम्मिलन के साथ हुआ अर्थात् जैन 'धर्म में ब्राह्मण देवी-देवता जैसे शिव, विष्णु, गणेश, कृष्ण, बलराम, राम, इन्द्र आदि को ग्रहण किया गया। जैन साहित्य में भी इनके उल्लेख मिलते हैं। इनमें ब्राह्मण देवी-देवताओं की लीलाओं के रोचक वर्णन मिलते हैं। त्रिशष्टिशलाकापुरूष चरित नामक ग्रन्थ में राम बलराम, लक्ष्मण, कृष्ण अदि के वर्णन मिलते हैं। इसी प्रकार निशुम्भ, मधु, कैटभ, बलि, प्रह्लाद, जरासन्ध आदि के भी वर्णन इस ग्रन्थ में किये गये हैं। विमलसूरि कृत पउमचरिउ (४७३ ई.) में राम और कृष्ण के चरित्र का विशद् वर्णन मिलता है। ___ भारतीय मूर्तिकला के अन्तर्गत अनेक ऐसी मूर्तियां निर्मित हुई जिनमें ब्राह्मण एवं जैन लक्षणों का संयुक्त निदर्शन किया गया है। राज्य संग्रहालय, लखनऊ में संरक्षित एक नेमिनाथ प्रतिमा के एक तरफ बलराम और एक तरफ चतुर्भुज कृष्ण का अंकन किया गया है। देवगढ़ के मंदिर क्रमांक ०२ (ललितपुर, उत्तर प्रदेश) में भी ब्राह्मण एवं जैन देव मूर्तियों के संयुक्त अंकन दृष्टव्य हैं। जैन एवं शैव धर्म के संयुक्त लक्षणों से युक्त प्रतिमाएं भी बनाई गयी हैं। यही नहीं, जैन मंदिरों में भी शिव, विष्णु, ब्रह्मा आदि की मूर्तियां प्रवेश द्वारों पर प्रदर्शित की गई हैं। ऊन (खरगोन, मध्य प्रदेश) स्थित चौवारा डेरा नम्बर २ तथा खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर में धार्मिक समन्वय के उक्त उदाहरण देखे जा सकते हैं। इसी प्रकार जैन देवी-देवताओं को भी ब्राह्मण मंदिरों में प्रतिष्ठित किया गया है। कंदरिया महादेव एवं विश्वनाथ मंदिर खजुराहो, सूर्य और हरिहर मंदिर ओसियां (राजस्थान), तेली का मंदिर (ग्वालियर) में ऐसे उदाहरण उपलब्ध हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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