Book Title: Sumati Jnana
Author(s): Shivkant Dwivedi, Navneet Jain
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 421
________________ उत्तरी मध्यप्रदेश के जैन अभिलेखों की लिपि (११वीं से १३वीं शती ई.तक)-एक अध्ययन यशवन्त सिंह मध्यप्रदेश के उत्तरी भूभाग में अवस्थित ग्वालियर-चम्बल संभाग के अंतर्गत आठ जिलों-ग्वालियर, मुरैना, मिण्ड, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, अशोकनगर और गुना में पुरातात्विक साक्ष्यों की उपलब्धता के आधार पर प्राचीन भारतीय इतिहास में उसकी महत्वपूर्ण स्थिति रही है। इस क्षेत्र में विभिन्न धर्मों यथा-शैव, वैष्णव, शाक्त आदि के साथ-साथ जैन धर्म से संबंधित विभिन्न पुरातात्विक साक्ष्यों की भी प्राप्ति होती है जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण जैन धर्म संबंधी अभिलेख हैं। अभिलेखों को समकालीन होने के कारण प्रामाणिक व ठोस आधार प्रदान करने वाले स्रोत के रूप में महत्व प्राप्त है। जैन अभिलेखों से विवेच्य क्षेत्र में जैन श्रद्धालुओं द्वारा विभिन्न जैन धर्मायतनों और मूर्तियों के निर्माण की सूचना मिलती है। जैन प्रतिमाओं के आसनों व पादपीठों पर उत्कीर्ण लेखों में उनके प्रतिष्ठा महोत्सवों, प्रतिष्ठापतियों, प्रतिष्ठाचार्यों, संघों, साधुओं आदि के विषय में उल्लेखनीय सूचनाएं प्राप्त होती हैं। इस क्षेत्र में ग्वालियर, चेत (जिला-ग्वालियर), सुहानियां (जिला-मुरैना), नरवर, पचराई, भीमपुर, गुडार (जिला-शिवपुरी), सोनागिर (जिला-दतिया). दूबकुण्ड, रदेव, धनेच, (जिला-श्योपुर), चंदेरी, बूढ़ी चंदेरी, कदवाहा (जिला-अशोकनगर), बजरंगगढ़ (जिला-गुना) आदि पुरास्थलों से प्राप्त जैन अभिलेखों से यहाँ जैन धर्म की सुदृढ़ता का अनुमान लगाया जा सकता है। प्रस्तुत आलेख में उत्तरी मध्यप्रदेश में ११वीं शती ई. से लेकर १३वीं शती ई. तक के जैन अभिलेखों की लिपि एवं भाषा का अध्ययन किया गया है। ११वीं से १३वीं शती ई. के मध्य के उत्तरी मध्य प्रदेश से प्राप्त जैन अभिलेखों को ‘नागरी लिपि में लिखा गया है तथा उनकी भाषा संस्कृत है। नागरी लिपि का विकास सामान्यतः प्राचीन 'ब्राह्मी लिपि' के निरन्तर विकासक्रम में विकसित 'गुप्तकालीन ब्राह्मी के परवर्ती स्वरूप 'न्यूनकोणीय लिपि' या 'कुटिल लिपि' के अक्षरों से हुआ है। 'न्यूनकोणीय' या 'कुटिल लिपि' में उत्कीर्ण अभिलेखों के अक्षरों में 'नागरी' की अपेक्षा अधिक कलात्मकता परिलक्षित होती है। कुटिल लिपि के अक्षरों के नीचे की ओर रेखाएं बांयी ओर मुड़ी हुई और स्वर की मात्राएं टेढ़ी व लम्बी होती हैं तथा इस लिपि शैली में अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस त्रिकोण हैं, जबकि नागरी लिपि शैली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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