Book Title: Sumati Jnana
Author(s): Shivkant Dwivedi, Navneet Jain
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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मेवाड़ की प्राचीन जैन चित्रांकन-परम्परा
355 __ आलिहिया तीए जहोवइटठा रायहंसिया। वही, पृ. ७१। ४. मयणलेहाए वि य अवस्थासूयगं से लिहियं इमं उवरि दुवईखण्ड। वही, पृ. ७१। ५. जंपिय चित्तमइणा। अरे भूसणय, दिलै तए अच्छरियं।
तेण भणियं। सुठु दिलै, किं तु विसण्णो अहं। वही, पृ. ६०६ । ६. सव्वहा अणुरूवो एस रायधूयाए। किंतु न तोर ए एयस्स संपुणपडिच्छन्दयालिहणं विसेसओ सइंदसणंमि। वही, पृ. ६०६ । ७. अह तं दठूण पडं पौइ मरिज्जन्तलोयणजुएण।
भणियं गुणचन्देणं अहो कलालवगुणो तुम।। जइ एस कलाए लवो ता संपुणा उ केरिसो होई।
सुन्दर असंभवो च्चिय अओ वरं चित्तयम्मास्स।। वही, पृ. ६०८/ ८. एसा विसालनयणा दाहिणकरधरियरम्मसयवत्ता। वही, पृ. ६०८/ ६. एवंविहो सुरूवो रेहानासो न दिट्टो त्ति। ___ जइवि य रेहानासो पत्तेयं होई सुन्दरो कहवि।। वही, पृ. ६०८ | १०. आलिहिओ कुमारेण सुविहत्तुज्जलेणं वणय कम्मेण अलरिकज्जमाणेहिं गुलियावएहिं अणुरूवाए सुहमरेहाए पयडदंसणेण निन्नुन्नयविभाएणं विसुद्धाए वट्ठणाए उचिएणं भूसण। कलावेणं अहणवनेहसुयत्तणेणं परोप्परं हासुप्फुल्लबद्धदिट्ठो आरूढ पेम्मत्तणेणं लङ्घिओचियनिवेसो विज्जाहर संघाडओ त्ति। वही, पृ. ६१५/ ११. संवत् १२८३ वर्षे श्री समधेसरदेव प्रणमते सुत्र () आल पुत्र माउको न एता। संवत् १२८६ वर्षे श्रावण सु. रखो श्री समधेसुरदेव नृसव ( ? ) श्रीधर पुत्र जयतकः सदा प्रणमति। शोध पत्रिका, वर्ष २५, अंक १, पृ. ५३-४। १२. ओझा, उदयपुर राज्य का इतिहास, पृ. १६६-७०। १३. संवत् १३१७ वर्षे माह सुदि १४ आदित्य दिने श्री मेदाघाट दुर्गे महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक उमापतिवर लब्धप्रौढ़ प्रताभूप-समलंकृत श्री तेजसिंहदेव कल्याण विजयराज्ये तत्पादपद्मनाम जीविनि महामात्य श्री समुद्घरे मुद्रा व्यापार परिपंथयति श्री मेदाघाट वास्तव्य पं. रामचन्द्र शिष्येण कमलचन्द्रेण पुस्तिकाव्य लेखि। श्रावक प्रतिक्रमणसूत्रचूर्णि, बोस्टन संग्रहालय, अमेरिका। १४. शोध पत्रिका, वर्ष ५, अंक ३, पृ. ४६ । १५. शोध पत्रिका, वर्ष २७, अंक ४, पृ. ४१-२। १६. संवत् १४७५ वर्षे चैत्र सुदि प्रतिपदा तिथौ। निशानाथ दिने श्रीमत मेदपाट देशे सोमेश्वर ग्रामे अश्विनी नक्षत्रे मेष राशि स्थिते चन्द्र। विषकायोगे श्रीमत् चित्रावाल गच्छे श्री वीरेचन्द्र सूरि शिष्येण धनसारेणकल्प पुस्तिका आत्मवाचनार्थ लिखापित लिषिता, वाचनाचार्येण शीलसुन्दरेण श्री श्री श्री शुभं भवतु। अगरचन्द्र नाहटा, आकृति (रा. ल. अं.) जुलाई १६७६, वर्ष ११, अंक १, पृ. ११-४ १७. संवत् १४८५ वर्षे निज प्रताप प्रभाव पराकृत तरण तरणी मंडलात श्री महाराजाधिराज मोकलदेव राज्य प्रवर्तमान नां श्री देवकुल वाटके। लालमाई दलपतभाई ज्ञान भण्डार, अहमदाबाद। १८. संवत् १४९२ वर्षे आषाढ़ सुदि गुरौ श्री मेदपाटे देशे श्री प. भीकमचन्द रचित चित्र रसिकाष्टक समाप्त श्री कुम्भकर्ण आदेशात्।
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