Book Title: Sumati Jnana
Author(s): Shivkant Dwivedi, Navneet Jain
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 394
________________ जैन धर्म में गृहस्थ नारीः एक ऐतिहासिक अध्ययन 369 महापुराण एवं पद्मपुराण में युवावस्था प्राप्त कन्या स्वयंवर व गंधर्व विवाह कर लेती थीं। पद्मपुराण' में कन्या की विदाई का करूणापूर्ण दृश्य चित्रित है। जैन पुराणों में कतिपय कुमारी कन्याओं द्वारा वैराग्यवश परिव्राजिका की दीक्षा ग्रहण करने का भी उल्लेख है। आगम ग्रन्थों में कन्या विवाह के अवसर पर दहेज प्रथा का उल्लेख मिलता है। राजगृह के गृहपति महाशत की तेरह पत्नियों में एक पत्नि रेवती अपने पिता के घर से आठ कोटि हिरण्य और आठ व्रज लेकर आयी, शेष स्त्रियाँ एक-एक कोटि हिरण्य और एक-एक व्रज लेकर आयी थीं। इसी तरह वाराणसी के राजा ने अपने जमाई को १००० गाँव, १०० हाथी, बहुत सा माल-खजाना, एक लाख सिपाही और १० हजार घोड़े दहेज में दिये थे। संभवतः यह प्रथा राजपरिवारों व धनीवर्ग में ही प्रचलित थी। इस प्रकार जैन सूत्रों में परस्पर के आकर्षण विवाह में अपगतगंधा और 'अभयकुमार, इन्द्रदत्त और राजकुमारी का वर्णन महत्वपूर्ण है। कन्या के कला-कौशल से प्रभावित होकर भी विवाह सम्पन्न होते थे। चित्रकार चित्रांगद की पुत्री कनकमंजरी की चित्रकला से प्रभावित होकर राजा ने उसे पट्टरानी बनाया था। साधु-मुनियों और ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के आधार पर विवाह होने के भी उल्लेख मिलते हैं। जैन आगमों में भी कुछ ऐसे विभिन्न विवाहों का उल्लेख है जो ब्राह्मण परम्परा में मान्य नहीं थे जैसे–मामा, बुआ, मौसी बहिन, सौतेली माता के साथ विवाह करना। महावीर स्वामी की पुत्री प्रियदर्शना से उसके भानजे जमालि ने विवाह किया था। ब्रह्मदत्त ने मामा की कन्या पुष्पचूला के साथ विवाह किया था। लाटदेश ने अपने मामा, बुआ अथवा मौसी की लड़की तथा देवर से विवाह के उल्लेख मिलते हैं। जैन सूत्रों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव तथा उनके पुत्र भरत और बाहुबली के विवाहों का उल्लेख है। इसके अलावा पुष्पमद्रिका नगरी के राजा ने अपने पुत्र पुष्पचूल का विवाह अपनी कन्या पुष्पचूला के साथ किया था। इस प्रकार के विवाह लाट और दक्षिणपथ में विहित तथा उत्तरापथ में निषिद्ध माने जाते थे। गोल्ल देश के ब्राह्मणों को अपनी सौतेली माता (माइसवत्ती) के साथ विवाह करने की छूट थी। इसके अलावा अन्य प्रकार के विवाह माता-पुत्र, पिता-पुत्री के विवाह की जानकारी भी प्राप्त होती है, जिसे अच्छा नहीं कहा गया। ये अपवाद के रूप में देखे जा सकते हैं। जैन ग्रन्थों में घर जमाई प्रथा का भी उल्लेख मिलता है जिसके तीन कारण बताये गये हैं, प्रथम, लड़के का पिता धनवान हो और उस धन की देखरेख करने वाला कोई पुत्र न हो। द्वितीय, कन्या का परिवार बहुत दरिद्र हो और उसे किसी बलवान आदमी की आवश्यकता हो। तृतीय, दरिद्रता के कारण जमाई कन्या का शुल्क देने में असमर्थ हो। चम्पा नगरी के राजा सागरदत्त ने अपनी कन्या सुकुमालिया हेतु सागर को घर जमाई बनाया था। पारस देश, बंगाल, उत्तरप्रदेश में इस प्रकार की प्रथा का चलन था जो कहीं-कहीं आज भी देखी जा सकती है। अश्वस्वामी ने अपनी पुत्री का विवाह एक नौकर से किया और उसे घर जमाई बना लिया।६५ ___ साटे के विवाह के अंतर्गत देवदत्त की बहिन की शादी धनदत्त से और धनदत्त की बहिन की शादी देवदत्त के साथ हुई थी।६ बौद्ध परम्परा के अनुसार राजा बिम्बिसार और प्रसेनजित को एक-दूसरे की बहिन ब्याही थीं।६७ प्राचीन काल में साधारणतया लोग एक पत्नी से ही विवाह करते थे और प्रायः धनी और शासक वर्ग ही एक से अधिक पत्नियाँ रख सकते थे। धनवान लोग अनेक पत्नियों को धन, सम्पत्ति, यश और सामाजिक गौरव का कारण समझते थे। इस सम्बन्ध के विशेषकर भरत चक्रवर्ती राजा विक्रमयशप, राजा श्रेणिकप६ गहपति महाशत आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। जैन ग्रन्थों में राजा के यहाँ स्त्रियों के लिए तीन प्रकार के अन्तःपुर का उल्लेख है। प्रथम, जीर्ण अन्तःपुर-वृद्धा स्त्रियों के लिए, द्वितीय, नवअन्तःपुर-नवयुवती परिभोग्य स्त्रियों के लिए और तृतीय, कन्या अन्तःपुर-कन्याओं के लिए।” जैन पुराणों के अनुशीलन से भी ज्ञात होता है कि तत्कालीन समय में राजाओं के पास बहुत सी रानियाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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