________________
४७
जैन आगम साहित्य में विवाह
डॉ. महेन्द्र नाथ सिंह एवं
प्रदीप कुमार शर्मा
जैन ग्रन्थों में कन्याओं को पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान कर उन्हें स्वयं अपना पति चयन करने का अधिकार प्रदान किया गया था। स्वयंवर के बाद (पति चुनने के बाद) उनका कल्दाण करण (मांगलिक क्रिया) महोत्सव सम्पन्न करके पाणिग्रहण कराया जाता था।' इस पद्धति से पति चयन करते समय उसे वंश, मातृ एवं पितृ पक्ष, गोत्र तथा उसके गुणों के संदर्भ में जानकारी प्राप्त की जाती थी। बड़े परिवारों (धन सम्पन्न) की कन्याओं के साथ स्वयंवर में दासियों को भी भेजा जाता था जो दर्पण लेकर उसके साथ चलती थी तथा वर के विषय में लेखा-जोखा तैयार करती थीं। जैनागमों के काल में स्वयंवर प्रथा के अंतर्गत कन्याओं को पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदत्त की गयी थी क्योंकि स्वयंवर की रचना करने के बाद कन्या जिसको भी चाहे, पति हेतु चयनित कर सकती थी। कन्याओं का क्रय-विक्रय इसके अतिरिक्त जैनागमों के युग में विवाह हेतु कन्याओं के क्रय किये जाने के भी प्रमाण मिलते हैं। प्रायः इसका प्रचलन एवं शौक धन सम्पन्न व्यक्तियों तथा राजाओं-महाराजाओं को था। प्रत्युत सौन्दर्य सम्पन्न कुमारी कन्या पर आकृष्ट होकर वे उसे अपनी पत्नी बनाकर अपने अन्तःपुर को शोभायमान करने हेतु लालयित रहते थे। ऐसी स्थिति में वे कन्या की प्राप्ति हेतु उसके पिता को शुल्क देने और उसे अपना रिश्तेदार बनाने हेतु आमंत्रित करते थे। इस प्रथा के अंतर्गत कन्या का पिता स्वयं कन्या को सज्जित कराकर अपने संबंधियों के साथ उसे वर को सौंपने हेतु जाते थे। यहां हमें वर्तमान समय में प्रचलित दहेज प्रथा के विलोम पक्ष का दर्शन होता है। अर्थात् कन्या के पिता द्वारा वर पक्ष से शुल्क अथवा उसके समतुल्य अन्य उपहारस्वरूप वस्तुएं प्राप्त करना तथा स्वयं को लेकर वर के घर जाने का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार से सम्पन्न किये जाने वाले विवाह साधारणतः आकर्षण एवं प्रेम भावना पर आधारित थे। अतः इसमें इन्हीं तत्वों की प्रधानता विद्यमान रहती थी तथा सजातीय एवं विजातीय का कम ध्यान किया जाता था। विवाह पद्धति साधारणतया वर एवं कन्या दोनों पक्षों के माता-पिता या उनके संरक्षक पहले विवाह संबंध सुनिश्चित करते थे। इसके बाद विधिपूर्वक विवाह प्रक्रिया संपादित की जाती थी। जैनागमों में इसके प्रचुर प्रमाण उपलब्ध हैं जब वर पक्ष की तरफ से उसके पिता या अग्रज बारात लेकर कन्या के यहां जाते हैं। इसके बाद उनका वहां विधिवत् अलंकरण किया जाता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org