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इक्यासी
प्रश्नव्याकरण सूत्र की सूक्तियाँ ४२. सब दानों में 'अभयदान' श्रेष्ठ है ।
४३. जो शुद्ध भाव से ब्रह्मचर्य पालन करता है, वस्तुतः वही भिक्षु है।
४४. ऐसा हित-मित भोजन करना चाहिए, जो जीवनयात्रा एवं संयमयात्रा के
लिए उपयोगी हो सके और जिससे न किसी प्रकार का विभ्रम हो और न धर्म की भ्रंसना।
४५. जो समस्त प्राणियों के प्रति समभाव रखता है, वस्तुतः वही श्रमण है।
४६. साधक को कमलपत्र के समान निलेप और आकाश के समान निरवलम्ब
होना चाहिए।
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