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एक सौ तीन
उत्तराध्ययन की सूक्तियाँ २०. दूसरों के छलछिद्र नहीं देखना चाहिए।
२१. बुद्धिमान ज्ञान प्राप्त कर के नम्र हो जाता है।
२२. साधक को खाने पीने की मात्रा = मर्यादा का ज्ञाता होना चाहिए ।
२३. संसार में अदीनभाव से रहना चाहिए ।
२४. किसी भी जीव को त्रास = कष्ट नहीं देना चाहिए ।
२५. जीवन में शंकाओं से ग्रस्त-भीत होकर मत चलो।
२६. बुरे के साथ बुरा होना, बचकानापन है।
२७. आत्मा का कभी नाश नहीं होता।
२८. “आज नहीं मिला है तो क्या है, कल मिल जाएगा"-जो यह विचार
कर लेता है, वह कभी अलाभ के कारण पीडित नहीं होता।
२९. इस संसार में प्राणियों को चार परम अंग (उत्तम संयोग) अत्यन्त
दुर्लभ हैं--१. मनुष्य जन्म, २. धर्म का सुनना, ३. सम्यक् श्रद्धा
और ४. संयम में पुरुषार्थ । ३०. संसार में आत्माएँ क्रमशः शुद्ध होते-होते मनुष्यभव को प्राप्त
करती हैं। ३१. धर्म में श्रद्धा होमा परम दुर्लभ है। . ..... .. ..।
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